अज्ञेय की काव्य भाषा | IGNOU MHD 02 Solved Assignment

एम एच डी – ०२

आधुनिक हिन्दी काव्य

सत्रीय कार्य

IGNOU MHD 02 Solved Assignment (2021 – 22)

अज्ञेय की काव्य भाषा का वैशिष्ट्य बताइए । (16)

उत्तर : अज्ञेय की काव्य भाषा:

अज्ञेय के लिए  काव्य भाषा कवि कर्म का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष है । अज्ञेय ने अपनी काव्य भाषा विकसित करने के लिए बहुत लंबा संघर्ष किया है । अज्ञेय के काव्य  में काव्य भाषा के प्रति गहरी चिंता है । सही और सार्थक भाषा की पहचान की ओर सदा वे सचेष्ट रहे हैं । उनकी काव्य भाषा की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका बल तद्भव शब्द के चुनाव पर हैं । तद्भव शब्द ग्रामीण जीवन की प्रामाणिक बिंब माला को उपस्थित करते हैं ।

अज्ञेय की सृजनात्मक क्षमता को भाषा और संवेदना दोनों दृष्टियों  से समृद्ध करता है । अज्ञेय के अनुसार काव्य सबसे पहले शब्द है और सबसे अंत में भी  यही बात बच जाती है कि काव्य शब्द है । ध्वनि , लय , छंद आदि के सभी प्रश्न इसी में से निकलते हैं और इसी में विलय हो जाते हैं ।

अज्ञेय  के काव्य भाषा की सर्जनात्मक विशिष्टता ‘असाध्यवीणा’  में सबसे अधिक प्रकट है । उन्होंने छायावादी संस्कारों के प्रभाव से मुक्त होने में वह  नयी  काव्यभाषा  अर्जित की ।  जिससे प्रयोगवाद और आगे नई  कविता की पहचान बनी । अज्ञेय की नयी  काव्य भाषा आकस्मिक घटना नहीं है बल्कि उसके पीछे लंबा संघर्ष है।

(१) काव्य बिंब:

काव्य भाषा को संगठित करने वाले उपादान के रूप में बिंब महत्वपूर्ण है । बिंब का विकास इमेज शब्द के अर्थ में हुआ है । केदारनाथ सिंह कहते हैं — ” बिंब शब्द का प्रयोग मूर्तिमत्ता अथवा चित्रात्मकता के अर्थ में किया जाता है , परंतु आज की समीक्षा में उसका  चित्रात्मकता वाला अर्थ गौण  हो गया है और वह उन समस्त काव्यगत विशेषताओं का बोधन बन गया है , जो पाठक को एंट्रीय चेतना के किसी भी स्तर पर प्रभावित करती है “।

अज्ञेय के बिंबविधान में वर्णय स्थिति और उसके बिंब को घुले – मिले रूप में देखते हैं ।—  पहाड़ी यात्रा का बिंब

“मेरे घोड़े की टॉंप

चौखटा जड़ती जाती है

आगे के नदी –  व्योम ,

घाटी पर्वत के आसपास

मैं एक चित्र में

लिखा गया सा आगे बढ़ता जाता हू” ।।

अज्ञेय की कविता “हरी घास पर क्षण भर” में मुक्त साहचर्य पद्धति के खंडित स्मृति बिंब की दृष्टि से उल्लेखनीय उदाहरण है —–

“क्षण भर अनायास , हम याद करें

चीड़ो का वन , साथ साथ  दुलकी चलते दो घोड़ें

गीली हवा नदी की , फूले नथुने ,

भर्रायी सीटी स्टीमर की , खण्डहर

ग्रथित अंगुलिया,  डाकिए के पैरों की चाप ‘—-

इन पंक्तियों में अज्ञेय  के  स्मृतिबिंब के बिखरे  मुक्त  संयोजन है । जैसे स्मृति के अवचेतन में कोई एक रील चल रही हो  ।

(२) काव्य प्रतीक:

काव्य प्रतीक मूल रूप में बिंब ही  होता है । तब उसमें अनेकार्थता  संभव होती है । और क्रमशः विकसित होते – होते वही प्रतिक  के रूप में जाना जाता है और प्राय:  एकार्थक लगने लगता है । बिंब अधिकतर उपचेतन मन की सृष्टि होता है , प्रतीक चेतन मन की । प्रतीक परम्परा के निकट जाकर समाज का जाना – पहचाना विचार बन जाता है । काव्यगत प्रतीक मूर्त और अमूर्त दोनों प्रकार का हो सकता है ।

अज्ञेय की कविता “नदी के द्वीप में”  द्वीप वैयक्तिकता का प्रतीक है , “धारा” सामाजिकता का , सामाजिक प्रवाह का । “बावरा अहेरी”  कविता में ‘अहेरी’  सूर्य का प्रतीक है । —-

“भोर का बावरा अहेरी

पहले बिछाता  है आलोक की

लाल लाल कनिया

पर जब खींचता हैं जाल को

बांध लेता है सभी को साथ

छोटी छोटी चिड़िया,

मंझोले  पंखे ,

बड़े – बड़े पंखी “—-

कवि प्रतीकार्थ  तक ले जाता है  कि वही ‘ मन विवर ‘ में दुबकी कलौंस  को दूर करने वाला है , भेजने वाला है  वह शिकारी !!

(३) मिथकीयता और काव्य भाषा:

मिथक को हम पुराणकथा या पौराणिक कल्पना से सम्बद्ध करते हैं । मिथक को भाषा का पूरक  कहा गया है । मिथकीयता  वह भाषा – प्रक्रिया है , जिसमें “काल”  का अनुभव  “दिक” और  “दिक  का अनुभव ‘काल’  में बदलता है । “चक्रव्यूह”  एक  मिथकीय प्रतिक कहा जा सकता है । “असाध्यवीणा”  कविता में “केशकम्बली” ,  “वज्रकीर्ति”  “किरिटी तरु”  “वासुकी नाग”  आदि के संदर्भ  मिथकीय काव्य भाषा के  लिए उपयुक्त संरचना निर्मित करते हैं  —-

“केशकम्बली  गुफागेह  ने खोला कम्बल

धरती पर चुपचाप बिछाया

वीणा उस पर रख , पलक मूदकर ,

प्राण खींच करके प्रणाम

अस्पर्श  छुअन से छूए तार “।।

(४) नया सादृश्यविधान और अन्य विशेषताए:

अज्ञेय की कविता में नया सदृश्यविधान काव्य भाषा को सर्जनात्मक वैशिष्ट्य देता है । अज्ञेय  “कलगी बाजरे की”  कविता में घिसे – पिटे परंपरागत उपमानो की हॅंसी उड़ाते हैं  , साथ ही नए अनगढ़ अकाव्यात्मक उपमानों की काव्यगत सार्थकता भी स्पष्ट की है । अज्ञेय की  “नख – शिख”  कविता में पैटर्न रीतिकालीन  नखशिख जैसा ही है , पर प्रयुक्त उपमा नयी  है और प्रभाव भी नया है । जैसे  दुर्वांचल की पंक्तिया—-

” पाशर्व  गिरी का नम्र चीड़ों  में

डगर  चढ़ती उमंगों सी

बिछी पैरों में नदी ज्यों दर्द की रेखा ” ।

अज्ञेय के काव्य भाषा की सृजनात्मकता का रहस्य किसी एक युक्ति में नहीं , बल्कि भाषा की समूची विधि में निहित है । जिसमें सादृश्यविधान या अलंकार विधान , बिंब प्रतीक मिथक के संयोजन की संशिंलष्टता होता है ।

अज्ञेय की काव्य भाषा  की दृष्टि से  मूल्यांकन :

अज्ञेय की लंबी यात्रा से कुछ कविताओं को चुन पाना कठिन है । कभी-कभी अल्पचर्चित कविताएं अज्ञेय की काव्य भाषा की विशेषता से अधिक परिचित कराती है । अज्ञेय  के लिए भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम नहीं , अपने से एक नया साक्षात्कार है । नयी काव्य भाषा के कारण हम यथार्थ को अधिक नए रूप में जानने लगते हैं ।

काव्य भाषा और सृजनात्मक बोध के प्रति अज्ञेय  हमेशा सजग रहे हैं । सृजन को बचाना उनके काव्य की एक नैतिक चुनौती है । नया बोध , नई  संवेदना के लिए नई भाषा को वे कविता में प्रस्तावित करते रहें । भाषा में ऐसे ऐसे बिंबों  की उन्होंने खोज की , जिसकी  ओर ध्यान ही नहीं दिया गया था । अज्ञेय सृजन क्रम में संवेदनात्मक भोंथरेपन से लगातार जूसते रहे हैं । यह उनके कवि कर्म की सार्थकता है ।

सारांश :

अज्ञेय आधुनिक भाव बोध के एक ऐसे कवि हैं , जिन्होंने काव्य भाषा और काव्य शिल्प की दृष्टि से खड़ी बोली की हिंदी कविता को नई समृद्धि दी है ।उन्होंने छायावादी संस्कारों के प्रभाव से मुक्त होने में वह नई काव्य भाषा अर्जित की जिससे प्रयोगवाद और आगे नई कविता की पहचान बनी ।

रोमांटिक –   आधुनिक के बीच , वैयक्तिक –  निवैयक्तिक के बीच , शब्द और सत्य के बीच , अज्ञेय जो द्वंद अनुभव करते हैं  , उसी से उनकी महत्वपूर्ण कविताएं  दुर्वांचल , नदी के द्वीप , यह द्वीप अकेला , बावरा अहेरी , बना दे चितेरे , असाध्यवीणा  संभव हुई  है ।

अज्ञेय की आत्म- चेतना बिंब,  प्रतीक , मिथक , नये सादृश्यविधान  के साथ एक विशेष संबंध बनाती है , जिससे आदर्श काव्य भाषा का संगठन संभव होता है। काव्य भाषा की नई खोज कवि के  लिए एक नया साक्षात्कार या आत्म – साक्षात्कार है और परम्परागत काव्य भाषा की नई खोज काव्य भाषा के लिए चुनौती है ।

अज्ञेय की नयी  काव्य भाषा आकस्मिक घटना नहीं है , उसके पीछे लंबा संघर्ष है । अज्ञेय अपनी परिचित अभ्यस्त मार्ग पर चलकर ही अपना काव्य भाषा  और शिल्प विकसित करते हैं । उनकी छोटी कविताएं कभी अवधारणात्मक है तो कभी प्रगीतात्मक ।  उनकी लंबी कविताएं नाटकीय भी है और प्रगीतात्मक भी है । अज्ञेय की काव्य भाषा एक के पीछे एक लंबा संघर्ष है । अज्ञेय के लिए भाषा केवल अभिव्यक्ति का माध्यम  नहीं , अपने से एक नया साक्षात्कार है ।

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