बाजार दर्शन [Bazar Darshan - जैनेंद्र कुमार] [AHSEC Class 12 Hindi notes]

बाजार दर्शन 
[Bazar Darshan - जैनेंद्र कुमार] 
[AHSEC Class 12 Hindi notes]

In this Article you will get बाजार दर्शन [Bazar Darshan] notes for Class 12 Hindi. These बाजार दर्शन [Bazar Darshan questions and answers] notes are useful for Class 12. Also will get chapterwise hindi notes here. 

1. सामान्यतः संयमी व्यक्ति क्या करते हैं?

उत्तर: - संयमी लोग 'पर्चेजिंग पावर' के नाम पर अपनी शान नहीं दिखाते। वे धन को जोड़कर बुद्धि और स्वयं से अपनी पावर बनाते हैं। प्रसन्ना रहते हैं और फिजूल खर्च नहीं करते।

2. लेखक 'संयमी' किन्हे कहता है तथा क्यों? 

उत्तर: - लेखक 'संयमी' उन लोगों को कहते हैं जो पैसे को फिजूल में खर्च नहीं करते। वे फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं तथा पैसे को जोड़ते रहते हैं। 

3. चाह का मतलब अभाव क्यों कहा गया है? 

उत्तर: - चाह का अर्थ है इच्छा, जो बाजार के मुक आमंत्रण से हमें अपनी और आकर्षित करती है और हम भीतर महसूस करके सोचते हैं कि आह! कितना अधिक है और मेरे यहां कितना कम है। इसलिए चाह अर्थात अभाव। 

4. बाजार के चौक के बारे में क्या बताया गया है? 

उत्तर: - बाजार का चौक हमें विकल व पागल कर सकता है। असंतोष, तृष्णा और ईर्ष्या से घायल मनुष्य को सदा के लिए बेकार कर देता है। 

5. बाजार के आमंत्रण के स्वरूप को स्पष्ट कीजिए? 

उत्तर: - बाजार का आमंत्रण मनुष्य को आकर्षित करता है। वह अपनी चकाचौंध व आकर्षण से लोगों को बुलाता है। वह उन्हें देखने के लिए मजबूर करता है। 

6. बाजार के आमंत्रण की क्या विशेषता होती है? 

उत्तर: - बाजार के आमंत्रण की विशेषता है कि उसमें आग्रह नहीं है। वह दूसरे को आकर्षित करता है ताकि उसका माल बिक सके।

7. ऊंचे बाजार के आमंत्रण को मुक्त क्यों कहा गया है? 

उत्तर: - ऊंचे बाजार के आमंत्रण को कहा गया है। इसका कारण यह है कि ऐसे बाजार अपने आकर्षण रूप से लोगों में चाहा जगाते हैं। वह ग्राहक के मन में माल खरीदने की इच्छा पैदा करता है। 

8. इस प्रकार के आमंत्रण से किस प्रकार की चाह जगती है? उस चाह में आदमी क्या महसूस करने लगता है? 

उत्तर: - बाजार के मूक आमंत्रण से ग्राहक स्वयं को अभावग्रस्त महसूस करता है। उसे लगता है कि जो कुछ उसके पास है वह पर्याप्त नहीं है। उसके मन में बहुत कुछ खरीदने की चाह जगती है। 

9. बाजार के जादू को 'रूप का जादू' क्यों कहा गया है?

उत्तर: - बाजार का रूप बड़ा आकर्षक होता है। वहां मन को लुभाने के लिए वस्तुओं को आकर्षण तरीके से सजाया जाता है। उस रूप को देखकर मनुष्य उनकी तरफ खींचा चला जाता है। इसलिए बाजार के जादू को रूप का जादू कहा गया है।

10. 'जेब भरी हो और मन खाली हो' का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: - लेखक कहता है कि जिस मनुष्य के पास पैसा है तथा मन खाली है अर्थात उसके मन में कोई लक्ष्य नहीं है तो बाजार उसको खूब प्रभावित करता है। 

11. बाजार का जादू किस तरह के व्यक्तियों पर अधिक असर करता है? 

उत्तर: - बाजार का जादू उन लोगों पर अधिक असर करता है जिन मन खाली है, परंतु जेबें भरी होती है। दूसरे खाली जेब व अधूरे भरे मन पर भी बाजार का जादू चलता है। ऐसे व्यक्ति अपनी शक्ति दिखाने के लिए गैर - जरूरी वस्तुएं भी खरीदते हैं। 

12. जादू का असर जाने पर व्यक्ति को क्या अहसास होने लगता है? 

उत्तर: - जादू का असर अर्थात खरीदारी के बाद बाजार का आकर्षण समाप्त हो जाता है। जिन चीजों को वह आराम के लिए खरीदता है। वे जीवन में खलल डालकर शांति भंग करती है।

13. मन खाली होने से क्या अभिप्राय है? यह खालीपन बाजारवाद को कैसे बढ़ावा देता है?

उत्तर: - मन खाली होने से अभिप्राय है - मन मे किसी निश्चित इच्छा या जरूरत का न होना। ऐसी स्थिति में आकर्षण के वशीभूत होकर ग्राहक बाजार से गैर जरूरी वस्तुएं खरीदता है।इससे बाजारवाद को बढ़ावा मिलता है।

14. इस जादू के बंधन से बचने का क्या उपाय हो सकता है?

उत्तर: - इस जादू से बचने का एकमात्र उपाय यह है कि मन खाली नहीं रहना चाहिए दूसरे शब्दों में ग्राहक के मन में अपनी जरूरत हुआ उससे संबंधित वस्तुओं के प्रति निश्चित होनी चाहिए। 

15. बाजार की सार्थकता किसमें है?

उत्तर: - बाजार की सार्थकता लोगों की जरूरत पूरी करने में है ग्राहक को अपनी आवश्यकता का सामान मिल जाता है तो बाजार सार्थक हो जाता है। 

16. लेखक किसे झूठ बताता है? 

उत्तर: - लेखक उस बात को झूठ मानता है कि मनुष्य अपनी सभी इच्छाओं को रोक लेता है। तप का रास्ता रेगिस्तान की ओर जाता है।

17. आँख फोड़ डालने का क्या अर्थ है? उससे मनुष्य पर क्या असर पड़ेगा?

उत्तर: - इसका अर्थ है - सांसारिक गतिविधियों को अनदेखा करना। इससे मनुष्य बेचैन हो जाता है क्योंकि मानव का स्वभाव कल्पना करने का है। वह कल्पना आँखो से पूरी होती नहीं दिखेगी तो वह परेशानी पैदा होती है।

18. हठयोग के बारे में लेखक क्या कहता है? 

उत्तर: - हठयोग वह है जो जबरदस्ती मनुष्य की इच्छाओं को समाप्त करता है। यह केवल हठ है। यह योग नहीं है।

19. हठयोग का क्या प्रभाव होता है? 

उत्तर: - हठयोग से मनुष्य का मन कमजोर, रक्तहीन, पीला व दुबला हो जाता है। वह आकर्षण व लालच से लड़ नहीं पाता तथा क्षुद्र वह संकीर्ण मानसिकता का हो जाता है। 

20. 'उस बल' से क्या तात्पर्य है? उसे किस जाति का तत्व बताया है तथा क्यों? 

उत्तर: - 'उस बल' से तात्पर्य है - बाजार में वस्तु खरीद के निश्चय का निर्णय। लेखक ने इस बल को ऊपर जाति का बताया है क्योंकि आम व्यक्ति आकर्षण के कारण ही निरर्थक वस्तु खरीदता है। 

21. लेखक किन - किन शब्दों के बारे में क्या बताता है?

उत्तर: - लेखक सिपरिचुअल, आत्मिक धार्मिक व नैतिक शब्दों के बारे में बताता है। वह इन शब्दों के सूचना अंतर के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता। ये सभी गुण अंतरिक है। 

22. मनुष्य पर धन की विजय चेतन पर जड़ की विजय कैसे हैं? 

उत्तर: - मनुष्य चेतन है तथा धन जड़। मनुष्य धन की चाह में उसके वश में हो जाता है। इसी कारण जड़ की चेतन पर विजय हो जाती है। 

23. बाजार को सार्थकता कौन देते हैं और कैसे? 

उत्तर: - बाजार को सार्थकता वे व्यक्ति देते हैं जो अपनी आवश्यकता को जानते हैं। वे बाजार से जरूरत की चीजें खरीदते हैं जो बाजार का दायित्व है। 

24. 'पर्चेजिंग' पावर क्या तात्पर्य है? बाजार को पर्चेजिंग पावर वाले लोगों को क्या देन हैं? 

उत्तर: - 'पर्चेजिंग' पावर का अर्थ है - खरीदने की शक्ति पर्चेजिंग पावर वाले लोग बाजार को विनाशक शक्ति प्रदान करते हैं वह निरर्थक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देते हैं। 

25. आशय स्पष्ट कीजिए - वे लोग बाजार का बाजारूपन बढ़ाते हैं। 

उत्तर: - लेखक कहना चाहता है कि कार्यशक्ति से संपन्न लोग चमक-दमक व दिखावे के लिए व्यर्थ की चीजें खरीदते हैं। उनकी अमीरी का पता चलता है 

26. बाजारवाद परस्पर सद्भाव में हास कैसे लगता है? 

उत्तर: - बाजारवाद परस्पर सद्भाव में उस समय कमी लाती है जब व्यापार में कपट आ जाता है। कपट तब जाता है। कपट तब आता है जब दिखावे के लिए निरर्थक वस्तुएं खरीदी जाती है। 

27. 'बाजार दर्शन' से क्या अभिप्राय है? 

उत्तर: - बाजार दर्शन से अभिप्राय है - बाजार के बारे में बताना लेखक ने बाजार की प्रकृति ग्राहक के प्रकार आधुनिक ग्राहकों की सोच आदि के बारे में पाठक को बताया है।

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