भाषा संबंधी चाँम्स्की के विचारों पर प्रकाश डालिए ।
[Chomsky ki Vichardhara IGNOU MHD - 07 Free Solved Assignment]
उत्तर : चाँम्स्की की विचारधारा :
चाँम्स्की रूपांतरण - निष्पादन व्याकरण के प्रवर्तक हैं। चाँम्स्की मनोवादी उपागम पर बल देते हैं, क्योंकि उनके अनुसार भाषा जन्मजात प्रवृत्ति है। मन और विचार से उसका गहरा संबंध है। चाँम्स्की के अनुसार भाषा के व्यवहार की क्षमता केवल मनुष्यों में है, प्राणी मात्र ध्वनी संकेतों से संप्रेषण करते हैं।
मनुष्य भाषा को नियमबध्द व्यवहार के रूप में अर्जित करता है और नियमों के आधार पर वाक्य बनाकर बोलता है। शिशु या अध्येता समाज में भाषा सुनते हैं, उसकी रचना का मन मे विश्लेषण करते हैं और उन नियमों को मन मे आत्मसात करते हैं। हमें भाषा को समाज से अर्जित करना होता है। लेकिन भाषा को अर्जित करने की प्रवृत्ति जन्मजात है, यही मनुष्यमात्र की विशेषता है ।
चाँम्स्की ने 1957 में (Syntactic Structures) नामक युग प्रवर्तक ग्रंथ का प्रणयन किया। ब्लूमफील्ड व्यवहारवादी है, तो चाँम्स्की मनोवादी है। वे भाषा की आदत और अर्थ से पृथक रचना विश्लेषण के विरोधी हैं। वे भाषा का अस्तित्व वक्ता के मस्तिष्क में मानते हैं। उनका व्याकरणिक सिद्धांत रूपांतरण - निष्पादनात्मक व्याकरण कहलाता है। उनका व्याकरण ब्लूमफील्ड की लगभग सारे मान्यताओं का खंडन करता है और भाषा के विश्लेषण, अर्जन आदि के संदर्भ में भाषा की नयी व्याख्या प्रस्तुत करता है ।
चाँम्स्की भाषा की आदत या व्यवहार द्वारा अर्जन के विरोध में भाषा की सृजनात्मकता पर अधिक बल देते हैं। यह सृजनात्मकता मात्र निरीक्षण द्वारा प्राप्त नहीं हो सकती। सृजनात्मकता मन की क्षमता है, जो किन्ही नियमों के अंतर्गत अब तक न सुनी गयी रचनाओं को भी पहचानता है। और नये-नये वाक्यों का उत्पादन करता है। भाषा के कुल वाक्यों की संख्या अनंत है, असीमित है । व्यक्ति इन सब वाक्यों को सुनकर भाषा का सही, ग्रहणीय उक्तियों को पहचानता है।
भाषा और व्याकरण की संकल्पना :
चाँम्स्की तथा उनके संप्रदाय के विद्वानो का कहना है कि भाषा जन्मजात गुण है, जो सिर्फ मानवों की विशेषता है। यह मानव के विकसित मस्तिष्क के कारण है। अतः किसी और प्राणी में भाषा की प्रवृत्ति नहीं दिखाई पड़ती। संसार में कोई मानव समाज नहीं है जो भाषा का प्रयोग न करता हो, संसार में कोई सामान्य व्यक्ति नहीं है जो भाषा का व्यवहार न करता हो। इस तरह भाषा व्यवहार तथा भाषा सीखने की प्रवृत्ति सार्वभौम है। जिसके कारण भाषाओं के विश्लेषण की एक सामान्य रूपरेखा स्थापित की जा सकती है, जो वास्तव में भाषा की रचना को नहीं, बल्कि भाषा बोलने की मानव की क्षमता तथा सृजनात्मक शक्ति को उद्घाटित करें।
चाँम्स्की का सिद्धांत प्रदत्त पर आधारित नहीं, बल्कि व्यक्ति की क्षमता पर आधारित है। इसी संदर्भ में चाँम्स्की व्याकरणिकता तथा ग्रहणीयत्ता पर विचार करते हैं। (Colourless green ideas sleep furiously) यह वाक्य व्याकरणिक है, लेकिन अग्राहय है। इसका निर्णय भाषा - भाषी अपनी भाषा की जन्मजात क्षमता के आधार पर करता है।चाँम्स्की के अध्ययन का आधार वे संगठित वाक्य है जो व्याकरणिक भी हों और ग्राहय भी हों ।
चाँम्स्की के अनुसार भाषा सीमित नियमों का समुच्चय है, जिनसे व्यक्ति भाषा के असीमित वाक्यों का उत्पादन करता है। इस कारण भाषा मात्र व्यवहार नहीं, नियमबद्ध व्यवहार है। जिस तरह व्यक्ति भाषा सीखने की अपनी जन्मजात प्रवृत्ति के कारण भाषा को सुनता है, भाषा का मन में विश्लेषण करता है और भाषा के नियमों को आत्मसात करता है। इन्हीं मन में अंकित नियमों के आधार पर वह भाषा के सही और ग्राहय वाक्यों का उत्पादन करता है और पहचानता है। चाँम्स्की इन अंकित नियमों को आंतरिक व्याकरण कहते हैं।
चाँम्स्की के इस आंतरिक व्याकरण के संदर्भ में कहा जा सकता है कि व्यक्ति स्वयं इन नियमों को नहीं जानता, न उद्घाटित कर सकता है। वह भाषा के प्रयोग में मात्र इनका उपयोग कर सकता है। आंतरिक व्याकरण से भाषा के वाक्यों के उत्पादन की शक्ति ही व्यक्ति की उत्पादक या निष्पादक क्षमता है।
चाँम्स्की के भाषा विज्ञान का एक मुख्य उद्देश्य है इन आंतरिक नियमों को व्याकरण के क्रमिक नियमों के समुच्चय के रूप में दिखाना जिससे हम व्याकरण के सहारे या संगणक आदि मशीनों के प्रयोग से सही तथा ग्राह्य वाक्यों का निष्पादन कर सके। इसी कारण चाँम्स्की का व्याकरणिक संप्रदाय निष्पादन व्याकरण या निष्पादन मॉडल कहा जाता है।
चाँम्स्की की दृष्टि से व्याकरण भाषा की व्यवस्था का वर्णन है और भाषा की नियमबद्धता ही उसकी व्याकरणिकता है। इसलिए व्याकरण का मूल उद्देश्य भाषा में निहित संरचना को प्रकट करना तथा उसका विवेचन करना है। इसीलिए चाँम्स्की ने भाषाविज्ञान के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण रखा है।
उनके अनुसार भाषाविज्ञान का उद्देश्य मानव मस्तिष्क में होने वाली उन प्रक्रियाओं को चित्रित करना है जो भाषिक व्यवहार के आधार है। इस दृष्टि से भाषा विज्ञान का भाषा - सामग्री से प्रत्यक्ष रूप में कोई संबंध नहीं है। यह तो मानव मस्तिष्क मैं स्थापित उस भाषाव्यवस्था को प्रस्तुत करता है जिसको अपने व्यावहारिक प्रयोग में लाने की क्षमता आदर्श वक्ता - श्रोता रखता है। भाषिक क्षमता एक आदर्श वक्ता - श्रोता की आंतरिक क्षमता है। दूसरे शब्दों में वह भाषा - विशेष का अंतर्निहित ज्ञान है।
चाँम्स्की ने जिस आदर्श स्थिति की संकल्पना की है उसे हम केवल एक आदर्श वक्ता - श्रोता के माध्यम से या उसके अंतर्ज्ञान के द्वारा ही जान सकते हैं। व्याकरण की दृष्टि से यह एक व्यापक दृष्टिकोण है, जिसका संबंध मानव मस्तिष्क से है बल्कि किसी भी भाषायी मान्यता को सिद्ध करने का स्रोत भी मानव मस्तिष्क से संबंधित अंतर्ज्ञान है।
चाँम्स्की की दृष्टि से सर्जनात्मकता तथा निष्पादन क्षमता दोनों शब्द समान अर्थ देते हैं। सर्जनात्मक शक्ति मन या मस्तिष्क का गुणधर्म है। निष्पादन क्षमता व्यक्ति में तो है ही नियमों के स्पष्टता से यह क्षमता व्याकरण में भी आ जाती है। चाँम्स्की ने व्याकरण के संबंध में 'पर्याप्तता' का सिद्धांत प्रस्तुत किया है सबसे पहले है ---
(i) "प्रेक्षण की पर्याप्तता" (Observational adequacy) –
भाषा किस जगह कौन सा प्रयोग होता है इसकी सूचना व्याकरण से मिल जाए ।
(ii) "वर्णन की पर्याप्तता" (Descriptive adequacy) -
व्याकरण न सिर्फ प्रयोगों का औचित्य स्पष्ट करें, बल्कि वक्ता के आंतरिक व्याकरण या भाषा बोलने की क्षमता का भी वर्णन कर सकें। इसमें व्याकरण न सिर्फ भाषा की रचना की विशेषताएं स्पष्ट करता है, बल्कि इससे भाषा बोलने वालों के मन की प्रक्रिया पर भी प्रकाश डालता है।
चाँम्स्की संप्रदाय के कारण भाषा अर्जन, भाषा दोषों का विश्लेषण आदि क्षेत्रों में भी नए युग का सूत्रपात्र हुआ है। इस संप्रदाय ने बच्चों के भाषा अर्जन के संदर्भ में सिद्ध कर दिया कि बच्चे नियमबद्ध व्यवहार के रूप में भाषा सीखते हैं।
हर बच्चे का भाषा सीखने का एक निश्चित क्रम होता है। यह क्रम सार्वभौम भी होता है। भाषा के अर्जन और व्यवहार के जैविक और मानसिक आधार इस संप्रदाय का प्रमुख अभिलक्षण है। तीसरा है --
(iii) "विश्लेषण की पर्याप्तता" (Explantory adequacy) -
व्याकरण सार्वभौम भाषावैज्ञानिक सिद्धांतों के अनुसार होना चाहिए । भाषा के सही, गलत आदि के निर्णय में आत्मसात्त किए हुए आंतरिक क्षमता का निर्णय करते हैं। इसी को हम व्यक्ति का अंतर्ज्ञान का सकते हैं।
यह एक निश्चित जानकारी है। यह भाषा की रचना की जानकारी है। चाँम्स्की इसे दक्षता का नाम देते हैं। वाक्य की रचना दक्षता का क्षेत्र है।
चाँम्स्की के अनुसार भाषा विश्लेषण का आधार भाषा का वह आदर्श वक्ता - श्रोता है, जो एक समरूप भाषा समुदाय का सदस्य हो और भाषा को अच्छे ढंग से जानता हो। उसके भाषा का ज्ञान ही उसकी भाषिक दक्षता है।
भाषावैज्ञानिक का काम है व्यवहार में व्यक्त भाषिक सामग्री में से वास्तविक भाषा दक्षता के अंतनिहित नियमों की व्यवस्था को ढूंढ निकालना । वास्तविक प्रत्यक्ष व्यवहार में से भाषा व्यवस्था नामक मानसिक सत्य का अन्वेषण करना क्योंकि चाँम्स्की प्रत्यक्ष व्यवहार को मात्र भाषिक दक्षता से उत्पन्न व्यापार मानते हैं।
इसका कारण हम भाषा के सिद्धांत में नहीं, मनुष्य की कार्य क्षमता, मानसिक क्षमता आदि में देखेंगे लेकिन चाँम्स्की के अनुसार व्यवहार की इन विशेषताओं को जानने के लिए दक्षता का अध्ययन आधार है।
सारांश :
चाँम्स्की हर वाक्य को भाषिक क्षमता के आधार पर उसकी अंतनिहित रचना के आधार पर देखने का प्रयास करते हैं। चाँम्स्की ने नियमों के व्याकरण की जगह सिद्धांतों और उप - व्यवस्थाओं की प्रविधि का निर्माण किया। उनकी मान्यता यह है कि नियम निर्धारण की अपेक्षा निर्माण की प्रक्रिया को निहित कारणों के संदर्भ में व्याख्यायित करना अधिक उपादेय हैं ।
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