अँखिया हरि दरसन की भूखी (Ankhiya hari darshan ki bhukhi), IGNOU MHD – 01 (हिंदी काव्य)

IGNOU MHD Notes and Solved Assignments

अँखिया हरि दरसन की भूखी (Ankhiya hari darshan ki bhukhi)

IGNOU MHD – 01 (हिंदी काव्य)

अँखिया हरि दरसन की भूखी।

कैसे रहैं रूपरसराची ये बतियाँ सुनि रूखी।

अवधि गनत इकटक मग जोवत तब एती नहिं झूखी।

अब इन जोग संदेसन ऊधो अति अकुलानी दूखी।।

बारक वह मुख फेरि दिखाओ दुहि पय पिवत पतूखी।

सूर सिकत हठि नाव चलाओ ये सरिता है सूखी।। उत्तर:

प्रसंग:

प्रस्तुत: पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी काव्य -1 के खंड – 3 के “भ्रमरगीत” से अवतरित है। इसके रचयिता वात्सल्य रस के सम्राट एवं कृष्ण भक्ति शाखा के निर्धन्य साहित्यकार सूरदास जी है। सूरदास जी ने ‘सूरसागर’ की रचना कर हिंदी साहित्य को अमूल्य अवदान दिया हैं।

संदर्भ:

यहाँ सूरदास जी ने कृष्ण और गोपी के प्रेम प्रसंगों का वर्णन किया है। जो कृष्ण के मथुरा चले जाने के बाद विरह – व्यथा से व्याकुल हो रही है। और उद्धव से कह रही है कि आपके ज्ञान-योग के उपदेश का हमारे ऊपर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा ।

व्याख्या:

गोपियों की विरह – व्यथा से व्याकुल होकर कृष्ण ने निर्गुण उपासना के समर्थक अपने परम मित्र उद्धव को ब्रज भेजें, जिससे वे अपने निर्गुण उपासना के उपदेशों से विरह – व्यथा में व्याकुल गोपियों को संतुष्ट कर सके और उन्हें कृष्ण को भुलाकर निर्गुण उपासक के द्वारा सुख और शांति प्राप्त कर सके। उद्धव अपने ज्ञान के अहंकार से प्रेरित होकर ब्रज पहुँचे और अपने निर्गुण उपासना का उपदेश देकर उन्हें संतुष्ट करना चाहे परन्तु गोपियों के तर्क के सामने उनका सारा ज्ञान निरर्थक हो गया।

सगुण उपासना का समर्थन करती हुई गोपियाँ कहती है कि हमारी ऑंखें हरि (कृष्ण) दर्शन को व्याकुल है। वे कृष्ण के रंग-रूप और रास लिलाओं पर मुग्ध है और उसका रसा स्वादन सहती है। कृष्ण के सौन्दर्यरूपी रस में रंगी ये ऑंखें तुम्हारी रूखी बातें सुनकर भला कैसे रह सकती है? कृष्ण के आने की अवधि गिनते हुए और एकटक दृष्टि से उनकी राह देखते हुए भी ये इतनी दु: खी नहीं हुई जितनी आपकी नीरस बातें सुनकर और योग के इस संदेश को सुनकर व्याकुल हुई हैं । आप के इस निर्गुण उपासना के रूखी बातें हमें अच्छी नहीं लगती।

अत: हमारी ऑंखें आप के इस उपदेश में रुचि नहीं ले सकती। आप के इस योग संदेश से हमारी ऑंखों की व्याकुलता और बढ़ गई है, और वे श्रीकृष्ण को देखने के लिए अधिक उत्सुक हो गई है। पहले आप हमें कृष्ण का दर्शन कराइये फिर अपने इस निर्गुण उपासना का संदेश दीजिए। हे, उद्धव हमारी प्रेम रूपी सरिता सुख गयी है। बालु पर नाव नहीं चलती अत:  हमारी ऑंखें आपके निर्गुण उपदेश को स्वीकार नहीं कर सकती यदि आप उन्हें जीवन – दान देना चाहते हैं तो कृष्ण रूपी धारा को ब्रज में प्रवाहित कीजिए।

यही धारा ही गोपियो को जीवन प्रदान कर सकती है। इस प्रकार सूरदास जी ने प्रस्तुत भजन में निर्गुण उपासना पर सगुण उपासना की विजय दिखलायी हैं।

भाषा शैली:

सूरदास के काव्य में लाक्षणिक पदावली, ब्रजभाषा का आधिक्य हैं तथा इसमें तत्सम, तद्भव, विदेशी तथा मुहावरे समाहित है।

अलंकार:

अनुप्रास, वक्रोक्ति अलंकार और रूपक अलंकारो का सुंदर और सटीक प्रयोग हुआ है।

विशेष:

(i) श्री कृष्ण के प्रति सखियों का उत्कट प्रेम प्रदर्शित हुआ है।

(ii) सूरदास के काव्य में गोपियों की भक्ति प्रेमभक्ति थी, जिसमें कृष्ण के प्रति समर्पण ही सबकुछ था।

(iii) गोपियों की कृष्ण के प्रति अनन्यता की अभिव्यक्ति है तथा वियोग श्रृंगार का पूर्ण परिपाक है ।

(iv) निर्गुण का खण्डन और सगुण का मण्डन भ्रमरगीत प्रसंग में है ।

(v) बालू में नाव चलाना — असंभव कार्य होना मुहावरा है ।

(vi) प्रसाद एवं माधुर्य गुण की अभिव्यक्ति है ।

और पढ़े:

➡ मन ना रँगाए, रँगाए जोगी कपड़ा (Mann na Rangaye, Rangaye Jodi Kapda)

➡ Jaag Pyari ab ka Sove (जाग पियारी अब का सोवै)

➡ दसन चौक बैठे जनु हीरा (Dashan Chauk Baithe Janu Hira)

➡ सोभित कर नवनीत लिए (Shobhit kar navneet liye)

➡ बिहसि लखनु बोले मृदबानी (Bisahi lakhanu bole mridbani)

➡ जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान (Jaati na puchho sadhu ki puchh lijiye gyan)

➡ झलकै अति सुंदर आनन गौर (Jhalke ati sundar aanan gaur)

➡ कबीरदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए। (Kabir ki Bhakti Bhawna par Prakash Daliye)

Leave a Comment

error: Content is protected !!