दसन चौक बैठे जनु हीरा (Dashan Chauk Baithe Janu Hira), IGNOU MHD – 01 (हिंदी काव्य)

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दसन चौक बैठे जनु हीरा (Dashan Chauk Baithe Janu Hira)

IGNOU MHD – 01 (हिंदी काव्य)

निम्नलिखित काव्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए ।

दसन चौक बैठे जनु हीरा । औ बिच बिच रंग स्याम गँभीरा ॥

जस भादौं-निसि दामिनि दीसी । चमकि उठै तस बनी बतीसी ॥

वह सुजोति हीरा उपराहीं । हीरा-जाति सो तेहि परछाहीं ॥

जेहि दिन दसनजोति निरमई । बहुतै जोति जोति ओहि भई ॥

रवि ससि नखत दिपहिं ओहि जोती । रतन पदारथ मानिक मोती ॥

जहँ जहँ बिहँसि सुभावहि हँसी । तहँ तहँ छिटकि जोति परगसी ॥

दामिनि दमकि न सरवरि पूजी । पुनि ओहि जोति और को दूजी ?॥

हँसत दसन अस चमके पाहन उठे झरक्कि ।

दारिउँ सरि जो न कै सका , फाटेउ हिया दरक्कि ।

प्रसंग :

प्रस्तुत पंक्तियॉं हमारी पाठ्यपुस्तक हिंदी काव्य–1 के पद्मावत महाकाव्य से अवतरित है । इसके रचयिता हिंदी साहित्य में सूफी भक्त भावना के कवि प्रवर्तक मलिक मुहम्मद जायसी हैं ।

संदर्भ:

प्रस्तुत अंश में कवि ने पद्मिनी के सौंदर्य का वर्णन किया है । और बताया है कि उसका चेहरा अतीव यानी बहुत ही आकर्षक था । जिससे प्रेमियों का उसके प्रति स्वाभाविक आकर्षक था  ।

व्याख्या:

पद्मिनी के दांत हीरे के समान  उज्जवल , आकर्षक और प्रकाशमान है , जिसे देखकर दर्शक आश्चर्यचकित हो जाते हैं थे । और इसके बीच-बीच में मसूड़ों का श्याम रंग शोभा और बढ़ा देती थी । जैसे भादो मास की काली घटा मे बिजली का प्रकाश दिखाई पड़ता है ।

उसी प्रकार पद्मिनी के मुख में उसके बत्तीसों दांत आलोकित या चमकते रहते थे । दांतो की चमक से भी अधिक पद्मिनी के दांत आकर्षक थे । हीरा की तरह उसके दांतो की आभा में लोग अपनी छाया देख लेते थे । जिस दिन ब्रह्मा ने उसकी दांतो की ज्योत को निर्मित किया था , उस समय अनेक प्रकार की ज्योति दिखाई पड़ी थी ।

रवि या सूर्य , चंद्रमा और नक्षत्रों की ज्योति लेकर ईश्वर ने उसका दांत निर्मित किया था तथा सभी हीरा , मोती अनेक रत्न से उसकी आभा को लेकर उन दांतों को बनाया था । जब कभी भी , जहां कहीं भी पद्मिनी अपने स्वभाव के अनुसार मुस्कुराती है वहां उसकी दातों की छटा फैल जाती है ।

बिजली के आभा भी इस ज्योति की बराबरी नहीं कर पाती अर्थात पद्मिनी के दांतो की उपमा केवल उसके दांत ही है वैसा दूसरा कोई भी पदार्थ नहीं जिससे उसके दांतों की तुलना की जा सके  ।

पद्मिनी जब हंसती थी , तब उसके दांत ऐसे चमकने लगते थे । जैसे पत्थर से प्रकाश की किरणें निकल रही हो । पद्मिनी के दांत सौंदर्य को देखकर प्रेमियों का हृदय आत्म विभोर हो जाता है  ।

पद्मिनी के दसन की ज्योति से दर्शकों के हृदय में द्वेष और क्लेश की भावना उत्पन्न होती है , और उसे पाने के लिए प्रयत्नशील हो उठते हैं । बिजली में यह क्षमता नहीं कि वह मानव हृदय को अपने प्रकाश से घायल कर सके । 

विशेष:

पद्मिनी के दंत सौंदर्य को कवि ने विभिन्न  उपमाओ और रूपको द्वारा चित्रित किया है ।

भाषा:

भाषा अवधि है । दोहा और चौपाई के माध्यम से कवि ने अपनी कल्पना को साकार किया है।

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