नागमती चितउर-पथ हेरा । पिउ जो गए पुनि कीन्ह न फेरा, IGNOUI MHD – 01 (हिंदी काव्य)

IGNOU MHD Notes and Solved Assignments

नागमती चितउर-पथ हेरा । पिउ जो गए पुनि कीन्ह न फेरा

IGNOU MHD – 01 (हिंदी काव्य)

निम्नलिखित काव्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए ।

नागमती चितउर-पथ हेरा । पिउ जो गए पुनि कीन्ह न फेरा I

नागर काहु नारि बस परा । तेइ मोर पिउ मोसौं हरा II

सुआ काल होइ लेइगा पीऊ । पिउ नहिं जात, जात बरु जीऊ I

भएउ नरायन बावन करा । राज करत राजा बलि छरा II

करन पास लीन्हेउ कै छंदू । बिप्र रूप धरि झिलमिल इंदू I

मानत भोग गोपिचंद भोगी । लेइ अपसवा जलंधर जोगी II

लेइगा कृस्नहि गरुड अलोपी । कठिन बिछोह, जियहिं किमि गोपी I

सारस जोरी कौन हरि, मारि बियाधा लीन्ह ? ।

झुरि झुरि पींजर हौं भई , बिरह काल मोहि दीन्ह

प्रसंग:

प्रस्तुत पंक्तियॉं हमारी पाठ्यपुस्तक हिंदी काव्य – 1 के  ‘पद्मावत’ नामक महाकाव्य से अवतरित है । इसके रचयिता सूफी कवि मलिक मुहम्मद जायसी हैं ।

संदर्भ:

प्रस्तुत पद्यांश  ‘पद्मावत’  नामक महाकाव्य से अवतरित है । इसके रचयिता हिंदी साहित्य में सूफी भक्त भावना के प्रवर्तक मलिक मुहम्मद जायसी हैं  ।इसमें पद्मावती को ईश्वर रतनसेन की जीवात्मा नागमती और पद्मावती को सांसारिक बाधा के रूप में प्रस्तुत किया गया है ।

व्याख्या:

रतनसेन पद्मावती के आकर्षण पर मुग्ध होकर चित्तौड़ चला गया । नागमती प्रिय के वियोग में व्याकुल होकर उसे खोजने लगी । नागमती चित्तौड़ तक रतनसेन को खोजी परंतु प्राप्त न कर सकी और वह व्याकुल होकर कहने लगी कि प्रियतम जो चित्तौड़ को गए थे पुनः वापस ना आ पाये ।

लगता है किसी सुंदरी के रूप से मुग्ध होकर वह उनके बस में पड़ गये है । वह उनके प्रिय को अपने बस में कर ली ।यौवनकाल में ही वह प्रियतम को अपना ली । जिसके वियोग में जल पीना भी मुश्किल हो गया है । अब जीवन की कोई भी आशा नहीं रही । जिस प्रकार से बावना रूप में विष्णु ने बलि को छला उसी प्रकार करुणा अवस्था में रतनसेन ने उसके साथ विश्वासघात किया ।

जिस प्रकार चंद्रमा ने गौतम पत्नी अहिल्या के साथ विश्वासघात किया । उसी प्रकार विष्णु ने जालंधर की पत्नी के सतित्व को विकृत किया और कृष्णा ने बिना किसी सूचना के ब्रज को त्याग कर गोपियों को विरह वेदना से तड़पाया ।

जिस प्रकार से बहेलिया ने सारस को मारकर उसकी पत्नी की वासना को तृप्त होने से वंचित कर दिया और वह तड़पती रह गयी । उसी प्रकार रतनसेन ने यौवन अवस्था में ही चित्तौड़ जाकर नागमती के जीवन को विरह वेदना से भर दिया और नागमती का जीवन अंधकार और निराशा से भर गया ।

विरह ही प्रेम की कसौटी है । नागमती विरह वेदना से व्याकुल है और उसकी वेदना निरंतर बढ़ती जा रही है । कवि ने उपमाओं , रूप  और प्रतीकों से नागमती की वेदना को चित्रित करने का सफल प्रयास किया है । 

भाषा शैली:

प्रस्तुत कविता की भाषा अवधी है । दोहा और चौपाई के माध्यम से कवि ने अपनी भावनाओं को चित्रित किया है ।

अलंकार:

प्रस्तुत कविता में अनुप्रास , रूपक , उपमा अलंकार का प्रयोग किया गया है । 

सार:

इसमें वियोग श्रृंगार का वर्णन है । नागमती का रतनसेन से वियोग हुआ है । रतनसेन पद्मावती के रूप और यौवन पर मुग्ध होकर  चित्तौड़ चला गया है । नागमती रतनसेन से मिलने को व्याकुल है । उसकी वेदना असहाय हैं , और वह रतनसेन से मिलने को व्याकुल है । रतनसेन को परमात्मा के रूप में प्रस्तुत किया गया हैं । पद्मावती जीवात्मा का प्रतीक है। जिस प्रकार नागमती रतनसेन से मिलने को व्याकुल  है , उसी प्रकार जीवात्मा परमात्मा से मिलने को व्याकुल है  ।

विशेषताएं:

(१) मनसवी शैली , हिंदू धर्म का ज्ञान , कल्पना और इतिहास का मिश्रण , प्रबंध शैली , अवधी भाषा , लौकिक प्रेम से अलौकिक प्रेम की प्राप्ति इत्यादि ।

(२) श्रेष्ठ कवि जायसी हैं ।

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