मनोभाषाविज्ञान | IGNOU MHD – 07 Free Solved Assignment

मनोभाषा विज्ञान का परिचय देते हुए उससे होने वाले लाभों का उल्लेख कीजिए। (15)

उत्तर : मनोभाषाविज्ञान :

IGNOU MHD – 07 Free Solved Assignment

भाषा मानव की अमूल्य निधि है। भाषा ध्वनियों में निर्मित शब्दिक प्रतीकों की व्यवस्था है। इस तरह समाज भाषा विज्ञान भाषा के संदेश के पक्ष पर बल देते हैं। जिसमें भाषा विज्ञान की एक और शाखा है, और उस समाज आधुनिक भाषा विज्ञान को मनोभाषा विज्ञान की संज्ञा दी गई है।

मनोभाषाविज्ञान का एक दूसरा प्रमुख क्षेत्र वाक् विकार है। ये विकार वास्तव में मन के विकास से ही जुड़ता है। और व्यक्ति किन्ही मानसिक स्थितियों से वशीभूत होकर सामान्य भाषिक संप्रेषण में सक्षम हो जाता है।

मनोभाषाविज्ञान दो ज्ञानक्षेत्रों अर्थात भाषाविज्ञान और मनोविज्ञान का समन्वित विज्ञान है। भाषाविज्ञान भाषा की संरचना और उसकी आंतरिक प्रकृति का विश्लेषण और अध्ययन करता है, और मनोविज्ञान भाषा को बोधात्मक ज्ञान का एक अंग मानकर इसका अध्ययन सामान्य और मानवीय व्यवहार क्षेत्र में करता है ।

मनोभाषाविज्ञान एक अंतरविज्ञानीय क्षेत्र है। और यह दो क्षेत्रों के मिलने और समान क्षेत्र के भागीदार बनने से अधिक है। 1950 में थॉमस सीबक और चार्ल्स आसगुड ने मिलकर भाषाविज्ञान और मनोविज्ञान के बीच अंतक्रिया से मनोभाषाविज्ञान आया।

भाषाविज्ञान यदि भाषा की भाषाई व्यवस्था का वैज्ञानिक सिद्धांत है, तो मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं के भाषाई ज्ञान का सिद्धांत है। मनोभाषाविज्ञान इन दोनों का समन्वित उपागम है। वस्तुतः मनोभाषाविज्ञान का उद्देश्य इस तथ्य को स्पष्ट करता है कि भाषाई ज्ञान संज्ञानात्मक व्यवस्थाओं में किस प्रकार  द्योतिक होता है।

भाषा सिद्धांत तथा अधिगम सिद्धांत परस्पर संबंध होकर भाषा अधिगम के सिद्धांतों का गठन करते हैं। इस प्रकार मनोभाषाविज्ञान, मनोभाव तथा भाषा विज्ञान की समन्वित निष्पत्ति है । एक ओर वह भाषा अधिगम से संबद्ध है, तो दूसरी ओर भाषा निष्पादन से।

मनोभाषाविज्ञान का मुख्य कार्य उन समस्त मानसिक प्रक्रियाओं का विवेचन करना है, जो भाषा ज्ञान, भाषा संप्राप्ति और भाषा व्यवहार से संबंध है।

पॉल फ्रीज के अनुसार “मनोभाषाविज्ञान” हमारी अभिव्यक्ति की आवश्यकताओं और संप्रेषण के बीच संबंधों का अध्ययन है और हमारे बाल्यकाल या बाद में सीखी गयी भाषा द्वारा प्रदत्त माध्यम से संबद्ध है। “मनोभाषाविज्ञान” का उद्देश्य है – संप्रेषण की स्थूल क्रिया के दौरान संदेश में सुधार या परिवर्तन का अध्ययन, श्रोता या वक्ता के संबंध और उनके कथन को अर्थ देना – जैसे – मानसिक क्षमता, पारस्परिक प्रभाव, सामान्य संदर्भ के प्रभाव आदि। इस दृष्टि से मनोभाषाविज्ञान को भाषाविज्ञान का अनुप्रयुक्त पक्ष कहा जा सकता है।

चाँम्स्की के अनुसार भाषा के व्यवहार की क्षमता मनुष्य की जन्मजात प्रवृत्ति है, मानव मस्तिष्क की अंतर्निहित क्षमता है । मानव मस्तिष्क में होनेवाली उन प्रक्रियाओं को चित्रित करना ही भाषाविज्ञान का उद्देश्य है । जो भाषिक व्यवहार के आधार हैं। भाषाविज्ञान का भाषा – सामग्री से प्रत्यक्ष रूप में कोई संबंध नहीं है। यह तो मानव मस्तिष्क में स्थापित उस भाषाव्यवस्था को प्रस्तुत करता है, जिसके ने व्यवहार प्रयोग में लाने की क्षमता आदर्श वक्ता – श्रोता रखता है। इस तरह भाषा के अध्ययन में मन या मनोवैज्ञानिक दृष्टि का महत्व है ।

मनोभाषाविज्ञान में भाषा का संबंध मानव मस्तिष्क से है, बल्कि किसी भी भाषायी मान्यता को सिद्ध करने का स्रोत भी मानव मस्तिष्क से संबंधित अंतर्ज्ञान है। इस दृष्टि से भी मनोभाषाविज्ञान को ही भाषाविज्ञान मानना उचित होगा।

मनोभाषाविज्ञान दो दिशाओं में कार्य करता है —

(i) मनोविज्ञान वक्ता और श्रोता की प्रक्रिया की व्यवस्था साथ ही भाषा के उत्पादन में सहयोग करता है ।

(ii) भाषा विज्ञान, भाषा व्यवस्था, संयोजक अनुक्रम की प्रकारता और अंतिम है वाक्य विन्यासात्मक व्यवस्था की गतिकी एवं भाषा का उद्भव । मनोभाषाविज्ञान शब्द का प्रयोग संकुचित तथा  व्यापक दोनों ही अर्थों में किया जा रहा है । संकुचित अर्थ में भाषाविज्ञान को कोडीकरण और विकोडीकरण  की क्रियाओं से संबद्ध किया गया है । व्यापक अर्थ में मनोभाषाविज्ञान संदेशों तथा उनके चयनकर्ता और व्याख्याता मानव के पारस्परिक संबंधों का अध्ययन माना गया है।

भाषाई प्रक्रियाओं के संदर्भ में मनोभाषाविज्ञान में न केवल भाषिक रूपों को सीखने की प्रक्रिया और संप्रेषण के प्रकार्य अपितु संदेशों की विचित्रता, बालक द्वारा संवेदना आदि भी इसके वर्ण्य विषय है ।

बालक में संज्ञानात्मक विकास से लाभ :

मनोभाषाविज्ञान के अंतर्गत व्यक्ति में गर्भागमन के क्षण से मृत्यु तक हमेशा परिवर्तन होता रहता है । कोई भी व्यक्ति सभी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक परिवर्तनो से अवगत नहीं हो सकता है, जबकि परिवर्तनों की गति काफी तीव्र रहती है, और व्यक्ति इन परिवर्तनों का स्वागत करता है क्योंकि इनमें वृद्धिशील या विकासमान स्थिति का आभास होता है —

(१) विकास का अर्थ :

विकास का अर्थ विशाल या वृद्धिशील होने तक ही सीमित नहीं है, अपितु यह एक क्रमिक व्यवस्थित विकास की परिपक्वता है । प्रोग्रेसिव शब्द से ही स्पष्ट है कि इसकी दिशा अग्रगामी हैं, पश्चिगामी नहीं ।

(२) विकास का अध्ययन :

व्यक्ति का विकास नई क्षमताओं और नए गुणों के रूप में होता है । यह निम्न स्तर से उच्च स्तर की क्रियाओं के मध्य संक्रमण की तरह होता है । मानव विकास के काल को समझने के लिए दो पद्धतियाँ अपनाई जाती है । प्रथम में, विभिन्न आयु के समूह में बालकों का मूल्यांकन करके आयु के विकास का प्रतिमान निकाला जाता है । दूसरे प्रकार में, एक ही व्यक्ति का बाल्यकाल सें किशोरावस्था तक सदा निरीक्षण करके उसका विकास देखा जाता है ।

बालकों के साधारण विकास को जानने के कई महत्वपूर्ण लाभ है :विकास में शारीरिक अंग प्रमुख हैं — बौद्धिक प्राप्तियों में उत्सुकता, कामवासनाभूति का ज्ञान, नैतिक स्तर, धार्मिक विकास, विभिन्न भाषाएं और मनस्तापीय  प्रवृतियाँ   विकास की स्तिथियाँ  हैं ।

मानव विकास की कुछ विशेषताएं हैं जो इसके रूप निर्माण पर प्रभाव डालती हैं :—

(i) विकास एक व्यवस्था पर चलता है :

प्रत्येक मनुष्य या प्राणी विकास के एक सांचे पर चलता है। विकास की गति और सीमाएं सभी के लिए एक सी है । मनुष्य में विकास अव्यवस्थित और बेढंगा नहीं होता, बल्कि एक व्यवस्थित साँचे में ढला होता है। व्यावहारिक साँचा अनुभव से प्रेरित रहता है। यद्यपि सब बच्चे एक से नहीं होते पर उनके विकास का ढंग एक का होता है । विकास सिर्फ सिर से पैर की ओर नहीं होता, अपितु केंद्र से परिधि की ओर भी होता है ।

(ii) विकास सामान्य से विशिष्ट प्रतिक्रिया की ओर बढ़ता है :

गतिवाही हो या बौद्धिक विकास सामान्य से विशिष्ट की ओर होता है । बच्चा पहले पूरा शरीर घुमाता है, बाद में एक-एक भाग को । पहले वह खिसकना, फिर  चलना सीखता है ।

(iii) विकास निरंतर होता है :

विकास धीरे-धीरे हमेशा होता है । शारीरिक और बौद्धिक विकास किशोरावस्था खत्म होने तक होता रहता है । बोलना भी रोने से ही धीरे-धीरे विकसित होता है, विकास में निरंतरता है अतः एक स्थिति दूसरे को प्रभावित करती है ।

(iv) विभिन्न अंगों का विकास विभिन्न गति से होता है :

सभी अंग एक सी गति से विकसित नहीं होते । शारीरिक और बौद्धिक अंगों का विकास गति से होकर अपने – अपने समय पर पूर्णता प्राप्त करता है ।

(v) विकास की गति में वैयक्तिक भिन्नताएं एक (स्थिर) भी रहती है :

विकास की गति स्थिर रहती हैं । जो बालक पहले एकदम बहुत तेजी से वृद्धि करते हैं, उनकी गति तेज ही रहती हैं । जिनकी गति कम रहती है, वह विकास में पीछे रहते हैं ।

(vi) अधिकांश गुण या लक्षण विकास से संबंध रहते हैं :

क्षतिपूर्ति का सिद्धांत यहाँ लागू नहीं होता । यह नहीं हो सकता कि एक बालक जो एक क्षेत्र में बहुत  होशियार है, दूसरे क्षेत्र में बुद्धू निकले । सशक्त बालक ही बुद्धिमान होता है, मंदबुद्धि बालक शारीरिक रूप से कमजोर ही रहेंगे । विकास किसी भी कारण से नहीं, बल्कि कई संबंद्ध कारणों से होता है ।

कुछ महत्वपूर्ण कारण इस प्रकार से है :—-

क) बुद्धि : यह सबसे प्रमुख कारण होता है । उच्चस्तरीय बुद्धि विकास बढ़ाती है, जबकि निम्नस्तरीय बुद्धि विकास कम करती है ।

ख) आंतरिक रस स्राव की ग्रंथियाँ : ग्रंथियाँ रस स्राव के कारण शारीरिक और बौद्धिक  विकास को प्रभावित करती है ।

ग) भोजन : भोजन का विकास में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है । केवल खाने की मात्रा का महत्व नहीं है, वरन उसमें  पाए जाने वाले विटामिन का भी महत्व है ।

घ) ताजी हवा और प्रकाश : विकास में ताजी हवा और प्रकाश का भी महत्व है,  इससे बौद्धिक विकास भी प्रभावित होती है।

 ड़) संस्कृति : विकास को संस्कृति भी प्रभावित करती है, पर अधिक नहीं । 

भाषाविज्ञान और मनोभाषा विज्ञान में अंतर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर : भाषाविज्ञान में और मनोभाषाविज्ञान में किसी न किसी स्तर पर अंतर है।

भाषाविज्ञान केवल भाषा या भाषायी क्षमता को ही महत्व देता है, जबकि मनोभाषाविज्ञान तो भाषा –  प्रयोक्ता के  बोघात्मक ज्ञान की प्रकृति का वर्णन और अध्ययन करता है। इसलिए यदि एक ओर भाषाविज्ञान का संबंध मूलतः वक्ता और उसकी उत्पादनवृति से है तो दूसरी ओर मनोविज्ञान का संबंध श्रोता से  और उसके बोधन और प्रत्यक्षीकरण की क्षमता से है।

भाषाविज्ञान मूलतः भाषिक क्षमता को भाषाज्ञान के लिए आवश्यक मानता है, जबकि मनोभाषाविज्ञान भाषिक क्षमता से प्रयुक्त व्यवहार का अध्ययन करता है। वह भाषा के विश्लेषण के लिए भाषाविज्ञान के सिद्धांतों द्वारा प्रतिपादित व्यवहार को ही महत्व देता है ।

भाषाविज्ञान का सत्यापन करने का तरीका या मापदंड आंतरिक है, इसके विपरीत मनोभाषाविज्ञान का मापदंड बाह्म है क्योंकि वह परीक्षणों के आधार पर भाषायी तथ्यों को व्यवहार के माध्यम से देखता है।

यह निष्कर्ष निकलता है कि भाषाविज्ञान और मनोभाषाविज्ञान में कुछ न कुछ अंतर अवश्य है। दोनों एक दूसरे के पर्याय नहीं है। भाषा विज्ञान का संबंध मुख्य रूप में भाषायी क्षमता और सर्जनात्मकता से हैं और मनोभाषाविज्ञान का भाषायी व्यवहार से।

अतः भाषायी क्षमता पर कई मनोवैज्ञानिक प्रतिबंध हो सकते हैं। ये ही मानव भाषा को भाषिक रूप देने में सक्षम होते हैं और भाषाई क्षमता के रूप  का विविध स्तरों पर निर्धारण करते हैं। संक्षेप में मनोभाषाविज्ञान इन्हीं नियमों का विवरण है।

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