कोश की प्रविष्टि |IGNOU MHD – 07 Free Solved Assignment

IGNOU MHD – 07 NOTES

कोश की प्रविष्टि (प्रश्नों के उत्तर 1000 – 1000 शब्दों में दीजिए ।)

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उत्तर : कोश की प्रविष्टि :

कोश या शब्दकोश को भारतीय साहित्य में प्राचीन काल से ही बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता रहा है। कोशकार भाषा का इतिहासकार होता है। उसका कर्तव्य होता है कि वह किसी भी शब्द के स्वरूप और अर्थ का यथातथ्य निरूपण, विश्लेषण और विवेचन करें। समय के साथ कोश किसी भी रूप या अर्थ को स्थिरता और मानकता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।

कोश की प्रविष्टि में कोश शब्द की सबसे बड़ी विशेषता होती है रूप और अर्थ दोनों ही दृष्टियों से उनकी स्वतंत्रता या निजता । कोश शब्द का अर्थ उनका अपना अलग अर्थ हो या अपनी पृथक संरचनात्मक विशेषता हो। जब दो शब्दों या रूपों का योग ऐसा होता है कि उसका अर्थ स्वतंत्र और विशिष्ट हो जाता है तो उसे कोशिय शब्द या इकाई कहते हैं।

कोश की प्रविष्टि की संरचना निम्नलिखित वर्गों में बाटा गया है :

(i) शीर्षशब्द का निर्धारण

(ii) वर्तनी और उच्चारण (अर्थ या परिभाषा)

(iii) व्युत्पत्ति आदि ।

(i) शीर्षशब्द का निर्धारण:

शीर्षशब्द को प्रविष्टि शब्द या प्रविष्टि इकाई भी कहते हैं। शीर्ष शब्द के चयन और निर्धारण के दो सबसे महत्वपूर्ण आधार है शब्दों का रूप और उनका अर्थ । इनके आधार पर ही शीर्ष शब्द का चयन किया जाता है। इसके निर्धारण के लिए कोशकार पैराडाइम पद्धति का उपयोग करता है। किसी भी शब्द के सभी विकारी रूपों के योग को पैराडाइम कहते हैं। इन रूपों में शब्द के व्याकरणिक अभिलक्षण की समानता और एकता होती है । इन रूपों में शब्द के मूल अर्थ की भी प्रायः समानता रहती हैं। जैसे:- घोड़ा, घोड़े।

विहितरूप का निर्धारण के कुछ आधार दिए जा रहे   हैं:

(i) बहुधा यह रूप अकेले घटित होने की रखता है ।

(ii) इसकी आवृत्ति पैराडाइम के सभी रूपों में सबसे अधिक होती है।

(iii) इसमें पूरे पैराडाइम का प्रतिनिधि बनने की क्षमता होती है।

शब्दों के रूप के साथ-साथ उनके अर्थ को भी कोशकार को बड़ी सूक्ष्मता और सावधानी के साथ देखना चाहिए। यदि पैराडाइम के तमाम रूपों में किसी एक का भी अर्थ विहित रूप के अर्थ से भिन्न हो तो उस रूप को कोश में स्थान देना आवश्यक हो जाता है । उनको या तो विहित रूप के साथ शीर्ष शब्द की प्रविष्टि में ही दिया जाता है या फिर उनकी स्वतंत्र प्रविष्टि की जाती है ।

(ii) वर्तनी और उच्चारण (अर्थ या परिभाषा):

शीर्ष शब्द के बाद बहुधा उसका उच्चारण दिया रहता है। उच्चारण का देना, न देना, कोश के प्रकार, भाषा की प्रकृति और उसके अभिलक्षणों पर आधारित होता है। अगर किसी भाषा में स्वनिम और लेखिम में विशेष अंतर है तो उच्चारण का दिया जाना बड़ा ही आवश्यक है। अन्य भाषा बोलने वालों के लिए भी इन कोशो का बड़ा उपयोग होता है।

वर्तनी :

एक ही शब्द कई प्रकार से लिखा जाता है और कुछ शब्दों या ध्वनियों को लिखने के लिए एक नियम लागू किया जाता है, तो दूसरे के लिए दूसरा । ऐसी भाषाओं के लिए वर्तनी कोश वर्तनी को सामान्य मानक रूप प्रदान करने में सहायता करते हैं । वैसे तो सामान्य कोश भी वर्तनी के मानकीकरण में सहायक होते हैं, लेकिन ये कोश विशेषकर वर्तनी के लिए ही बनाए जाते हैं ।

(iii) व्युत्पत्ति :

कोश की प्रविष्टि में बहुत से शब्दकोश पूरी व्युत्पत्ति देते हैं। कुछ कोशो में व्युत्पत्ति प्रविष्टि के अंत में दी जाती है। लेकिन बहुत से कोशो में उत्पत्ति संबंधी सूचना या संकेत दिया रहता है । इस संकेत के अंतर्गत कुछ कोशों में केवल शब्द की स्रोत भाषा का नाम दिया रहता है तो कुछ कोशों में स्रोत भाषा का नाम और उसमें स्रोत शब्द का स्वरूप दोनों ही दिए रहते है।

कोशिय प्रविष्टि का दूसरा भाग कोशिय इकाई का अर्थपरक विवरण प्रस्तुत करता है। अर्थ के विभिन्न घटकों का, जो किसी भी शब्द के अर्थगन अभिलक्षणों को  निर्धारित करते हैं। कोशों का प्रमुख और केंद्रीय उद्देश्य होता है शब्द के अर्थ को यथासंभव अधिक से अधिक स्पष्ट और सटीक रूप से प्रस्तुत करना।

लेकिन भाषा के सभी शब्दों की परिभाषा के लिए मात्र भाषाई अर्थ ही पर्याप्त नहीं हुआ करते। बहुत से शब्दों के अर्थ के विकास में भाषा के बोलने वालों की ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, मिथकीय और लोक साहित्यिक परंपराओं का योगदान रहता है।

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