मातृभाषा (लगभग 250 – 250 शब्दों में टिप्पणी लिखिए |) | IGNOU MHD – 07 Free Solved Assignment

IGNOU MHD – 07 NOTES

मातृभाषा (लगभग 250 – 250 शब्दों में टिप्पणी लिखिए |)

IGNOU MHD – 07 Free Solved Assignment

उत्तर :  भाषा – शिक्षण का सीधा संबंध ‘भाषा’ से होता है। यहाँँ  सीखने और सिखाने वाली ‘वस्तु’ भाषा ही होती है । अर्थात भाषा – शिक्षण की अध्ययन वस्तु भाषा होती है। भाषा, जो भाषा वैज्ञानिक अध्ययन की ‘अध्ययन वस्तु’ भी है। अतः भाषा – शिक्षण में भाषा ही साध्य भी है और साधन भी। आज भाषा को एक सामाजिक वस्तु के रूप में भी पहचान मिली है। उसे सामाजिक वस्तु मानने का मूल कारण भाषा से मनुष्य का अटूट अंत: संबंध है। भाषा – शिक्षण के क्षेत्र में भी भाषा सीखने सिखाने वाले दोनों ही मनुष्य होते हैं । भाषा शिक्षण में इसलिए आज अध्येय भाषा के साथ भाषा – अध्येता, उसके अभिप्रेषण तथा उसकी मनोवृति को केंद्रीय स्थान प्रदान किया गया है।

भाषा शिक्षण अपनी प्रकृति,  प्रणाली तथा अध्येता की अपनी आवश्यकता, प्रयोजन एवं अभिप्रेरणा के लिए मातृभाषा को एक रूप माना है । मातृभाषा एक संस्थागत यथार्थता है। इसका कारण यह है कि मातृभाषा ही व्यक्ति को वृहत्तर सामाजिक संदर्भो से जोड़ती है। मातृभाषा के द्वारा ही व्यक्ति अपनी सामाजिक अस्मिता निर्धारित करता है।

मातृभाषा – शिक्षण व्यक्तित्व के विकास का चरण है। व्यक्ति मातृभाषा से ज्ञान के संसार में प्रवेश करता है। और मातृभाषा में अभिव्यक्ति के स्तर पर अधिक से अधिक कुशलता प्राप्त करता है। व्यक्ति मातृभाषा को समाज में सामान्य सदस्य बनने के लिए सीखता है, इसलिए वह मातृभाषा में क्षमता और गति पा जाता है।

भाषा – शिक्षण में हिंदी भाषा को मातृभाषा के अंतर्गत रखा गया है। हिंदी भाषा समुदाय मूल रूप में बोली भाषी समूहों से निर्मित है। हिंदी की इन बोलियो को हम हिंदी की अधीनस्य बोलियाँ (Suboridinate language) कहते हैं। जैसे — ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मैथिली, मगही आदि । इन बोलियों के प्रयोक्ता अपने बोली – क्षेत्र के बाहर के एक बृहतर समाज से जुड़ने तथा अपनी सामाजिक अस्मिता स्थापित करने के लिए हिंदी को मातृभाषा के रूप में स्वीकारते और सीखते हैं। इस प्रकार व्यक्ति के सामाजीकरण में मातृभाषा की अहम् भूमिका होती है।

वास्तव में व्यक्ति मातृभाषा अधिगम द्वारा कई क्षमताएँ अर्जित करता है :

(i) मातृभाषा के माध्यम से व्यक्ति ज्ञान को अनुभवसिद्ध करने की क्षमता अर्जित करता है।

(ii) मातृभाषा के माध्यम से व्यक्ति की बोधन क्षमता विकसित होती है ।

(iii) मातृभाषा के माध्यम से ही व्यक्ति अपनी   अनुभूतियों और संवेदनाओं को बहुविध ढंग से व्यक्त कर पाने में सक्षम बनता है ।

(iv) मातृभाषा के माध्यम से ही व्यक्ति अपने समाज और संस्कृति में अपना स्थान ढूँढने और निर्धारित करने में समर्थ होता है ।

(v) मातृभाषा ही व्यक्ति को उसके अनेक बौद्धिक व्यवहारों को साधने, नियंत्रित करने और संपन्न करने में सक्षम बनाती है ।

इस प्रकार किसी भी भाषा – समाज के लिए उसकी मातृभाषा एक सामाजिक यथार्थ है। साक्षरता का आधार मातृभाषा बनती है। जिसे व्यक्ति सहज और स्वाभाविक  रूप में बोलने – समझने में समर्थ होता है, अर्थात उसकी अपनी मातृभाषा ।

अतः मातृभाषा शिक्षण को यथार्थपरक और सार्थक बनाने के लिए शिक्षा का माध्यम भाषा के रूप में उभारना और बहुआयामी बनाना अनिवार्य है।

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