जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान (Jaati na puchho sadhu ki puchh lijiye gyan), IGNOU MHD – 01 (हिंदी काव्य)

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जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान (Jaati na puchho sadhu ki puchh lijiye gyan)

IGNOU MHD – 01 (हिंदी काव्य)

1. निम्नलिखित प्रत्येक काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

क) जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान।

मेल करो तलवार का पड़ा रहन दो म्यान ।।

हस्ती चढ़िए ज्ञान को, सहज दुलीचा डारि।।

स्वान-रूप संसार है, मूंकन दे झक मारि।।

प्रसंग :

प्रस्तुत  पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक हिंदी काव्य – 1 के खंड 2 से अवतरित है। इसके  रचयिता निर्गुण भक्ति शाखा के प्रवर्तक  समाज सुधारक निर्भीकर्ता हिंदू – मुस्लिम एकता के समर्थक एवं भाषा के डिक्टेटर संत कबीरदास जी हैं ।

संदर्भ :

प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने ज्ञान का संदेश दिया है ।कबीर जिंदगी की असली कसौटी ज्ञान को ही मानते हैं । वे धर्म और जाति से ज्यादा ज्ञान को महत्व देते हैं ।कबीर जटिल धर्म – साधना पद्धतियों की तुलना में अपने सहज मार्ग “ज्ञान” का महत्व बताते हैं  ‌‌।

व्याख्या :

संत कबीरदास जी सीधे सरल शब्दों में कह रहे हैं कि सज्जन पुरुष की जात पर ध्यान न देते हुए उसके ज्ञान को आत्मसात करने की कोशिश करनी चाहिए । किसी के ज्ञान तथा उसकी जात में जमीन – आसमान का फर्क होता है ।  किसी सज्जन पुरुष की जाति न पूछकर हमें उसके दिए हुए  ज्ञान को अपनाना चाहिए । जिस प्रकार महत्व तो तलवार का होता है क्योंकि धार  केवल उसी में होता है , म्यान तो केवल एक खोल है , बाह्य आवरण मात्र है , जिसका धार से कोई लेना देना नहीं है । ठीक उसी तरह मूल्य तो केवल ज्ञान का है , और सज्जन पुरुष की पहचान भी यही है । जाति तो बाहरी विधान है , जिसके होने अथवा न होने पर भी कोई फर्क नहीं पड़ता । कबीरदास जी कहते हैं कि धर्म अथवा जाॅंत कोई भी क्यों न हो , महत्व केवल ज्ञान का होता है ।

कबीर सहज तरीके से हाथी के सामान ज्ञान को अर्जित करने की बात कहे है, क्योंकि यह संसार कुत्ता स्वरूप है , जो बिना वजह भोंकते रहता है । अपनी लाचारी दिखाते रहते हैं । झक मारते रहते हैं ।हमें इन सब बातों को छोड़कर सच्चे और अच्छे ज्ञान की प्राप्ति करनी चाहिए , क्योंकि कबीरदास जिंदगी की असली कसौटी “ज्ञान” को ही मानते हैं ।

भाषा :

(१) भाषा सरल एवंम अपने भावों को व्यक्त करने में समर्थ है ।

(२) भाषा व्यंग्यात्मक है ।

(३) कबीर की भाषा सधुक्कड़ी अर्थात राजस्थानी –   पंजाबी मिली खड़ी बोली है ।

शिल्प :

दोहा छंद में तत्सम और तद्भव शब्दों का सहज प्रयोग किया गया है ।

विशेष :

(१) लाक्षणिकता ने भाव गहनता को प्रकट किया है ।

(२) स्वर मैत्री ने गेयता का गुण उत्पन्न किया है ।

(३) शांत रस का प्रयोग है ।

(४) जीवन की असली कसौटी ज्ञान ही है ।

(५) ज्ञान के महत्व को दर्शाया गया है ।

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