झलकै अति सुंदर आनन गौर (Jhalke ati sundar aanan gaur), IGNOU MHD – 01 (हिंदी काव्य)

IGNOU MHD Notes and Solved Assignments

झलकै अति सुंदर आनन गौर (Jhalke ati sundar aanan gaur)

IGNOU MHD – 01 (हिंदी काव्य)

1. निम्नलिखित प्रत्येक काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या कीजिए:

(घ) झलकै अति सुंदर आनन गौर, छके दृग राजत काननि छ्वै।

हँसि बोलन मैं छबि फूलन की बरषा, उर ऊपर जाति है ह्वै।

लट लोल कपाल कलोल करै, कल कंठ बनी जलजावलि द्वै।

अंग-अंग तरंग उठै दुति की, परिहै मनौ रूप अबै धर च्वै॥

प्रसंग :

प्रस्तुत  पंक्तिया  हमारी पाठ्यपुस्तक हिंदी काव्य -1 की रीति काव्य से लिया गया है। इसके रचयिता रीतिकाल के विलक्षण , प्रेमानुभूति के स्वच्छंद कवि घनानंद जी हैं ।

संदर्भ:

प्रस्तुत पंक्तिया में  प्रिय की मुस्कान, मधुर वाणी, ललक युक्त मुद्रा की स्मृति का सौंदर्य  चित्रण  हुआ  है। जिसमें प्रियतम का  साक्षात्कार कर प्रिय  बेसुध हो जाता है और उसके मति की गति रुक जाती हैं  ।

व्याख्या :

घनानंद रीतिकाल के एक विलक्षण कवि है , उनकी प्रेम संबंधी दृष्टिकोण रीति  कवियों से सर्वथा भिन्न है । उनकी प्रेमानुभूति स्वच्छंद है। घनानंद ने न केवल सैद्धांतिक धरातल पर श्रृंगार की रसराजता  घोषित की बल्कि व्यवहारिक जीवन में भी इसी के अंग – उपांगों  की उपासना की । जिसमें प्रिय के रूप का साक्षात्कार कर लेने से भी  प्रेमी प्रसन्न नहीं होता ।भगवान की छटा देखकर जैसे भक्त आश्चर्यचकित हो जाता है । उसकी  मती की गति रुक जाती है । और प्रियतम का साक्षात्कार  कर  प्रिय  बेसुध हो जाता है और उसे अपने प्रियतम का गोरा मुख अत्यंत सुंदर लग रहा है ।

प्रियतम का गोरा मुख अपनी आभा से जगमग आ रहा है । प्रेम मद से तृप्त उसकी बड़ी-बड़ी आंखें मानो कानों को स्पर्श करना  चाहती है । जब वह हॅंसती बोलती है तो उससे सौंदर्य रूपी फूलों  की वर्षा होती  है और वह सीधे हृदय पर गिरती हैं । चंचल अलकें  गालों पर आ जाती है लगता है, जैसे  उसकी लटे गालों से खेलती  प्रतीत होती है । उसके गले में दो लड़  की मोतियों की माला शोभायमान हैं । उसके शरीर का प्रत्येक अंग जगमगा  रहा है । लगता है अभी सौंदर्य धरा पर टपक पड़ेगा । प्रियतम को चेतना से देखने की कला , उसका रंगीलापन  क्षण मात्र को भी भुलाया नहीं जाता ।

भाषा :

घनानंद के काव्य में भावों के समान ही उनकी भाषा में भी नवीनता है । उनकी भाषा टकसाली ब्रजभाषा है ।

शैली  :

घनानंद की शैली  का आंतरिक रूप भाव प्रधान  है। भावों तथा  हृदय की अंतर्दशाओं  का प्रत्यक्ष वर्णन है ।इसमें रमणीयता  तथा अनुभूति योग्यता लक्ष्णा द्वारा उत्पन्न  होती है ।

अलंकार:

घनानंद के काव्य में यमक , श्लेश, अनुप्रास, उपमा , सांगरूपक, व्यक्तिरेक अनन्वय , संदेह , विनिमय , प्रतीप  , उत्प्रेक्षा , रूपक , अतिशयोक्ति ,  विरोध ,  हिनोपमा आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है ।

विशेष :

(१) रीतिकालीन काव्यदर्श काव्य के बाहृय रूपों को सॅंवारने  सजाने में थे । घनानंद के यहा अनुभूति पक्ष पर जोर दृष्टिगत होता है ।

(२) घनानंद के सौंदर्य चित्रण में भी एक गरिमा है , जो पाठकों  को रस विभोर कर देता है ।

(३) घनानंद के काव्य में प्रिय की मुस्कान , मधुर वाणी , ललक युक्त मुद्रा की स्मृति का चित्रण हुआ है ।

(४) प्रेम के प्रति पूर्ण समर्पण ही घनानंद की विशिष्टता है

(५) प्रख्यात कवि घनानंद का यह  संयोग श्रृंगार का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है ।

(६) सात्विक सौंदर्य का चित्रण बड़ा ही  मनोहर और अनूठा है ।

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