(1) तुलनात्मक भाषा विज्ञान
IGNOU MHD – 07 Free Solved Assignment
उत्तर: तुलनात्मक भाषा विज्ञान : आधुनिक युग में विभिन्न भाषाओं के ज्ञान के साथ उनकी तुलना करने की जिज्ञासा पैदा हुई, जिससे उनकी संबद्धता का विश्लेषण किया जा सके । विभिन्न समाजों के एक दूसरे के संपर्क में आने पर एक दूसरे की भाषाओं में रुचि बढ़ी । ध्वनि, रूप, शब्द, वाक्य रचना आदि कई भाषिक इकाइयों में कई समान तत्व है ।
तुलनात्मक भाषा विज्ञान की मूलभूत तकनीक तुलनात्मक पद्धति जैसी तकनीकों का उपयोग करके ध्वन्यात्मक प्रणालियों, रूपात्मक प्रणालियों, वाक्य विन्यास और दो या दो से अधिक भाषाओं के शब्दकोश की तुलना करना है । जो उन भाषाओं के ऐतिहासिक विकास को समझने में सहायक होती है इसी अध्ययन को हम तुलनात्मक भाषा विज्ञान की संज्ञा देते हैं।
तुलनात्मक भाषा विज्ञान के दो आधार हो सकते हैं ध्वनि, रूप आदि स्तरों पर तुलनात्मक भाषा विज्ञान पर संबद्धता है ।
हिंदी | पंजाबी |
सात | सत्त |
काम | कम्म |
हाथ | हथ |
ऐतिहासिक रूप से हम सप्त- सत्त-सात के विकास क्रम में पंजाबी ने बीच के विकास को अपना लिया और हिंदी ने आगे परिवर्तन जारी रखा । तुलनात्मक भाषा विज्ञान में संबद्धता उन्हीं भाषाओं से मिलती है, जो एक ही परिवार की हो और जिनका विकास क्रम एक हो । दूसरा आयाम है ध्वनि परिवर्तन, इसे ही तुलनात्मक भाषा विज्ञान की संज्ञा देते हैं ।
(क) भाषाओं का वर्गीकरण : (1) पारिवारिक वर्गीकरण ; (2) आकृतिमूलक वर्गीकरण :
(1) पारिवारिक वर्गीकरण :
विश्व की भाषाओं के साम्य तथा संबद्धता के प्रति रुचि जागी और भाषाओं की तुलना के आधार पर भाषाओं के पारिवारिक वर्गीकरण हुआ । तुलनात्मक भाषा विज्ञान का उद्देश्य भाषा परिवारों का निर्माण करना है । भारत में कई भाषाएं हैं । उत्तर में हिंदी, बांग्ला, पंजाबी, गुजराती आदि दक्षिण में तमिल, तेलुगू, कन्नड़ आदि पूर्व में खासी, मणिपुरी आदि । भाषा वैज्ञानिक इन्हें चार भाषा परिवारों में बाँटते हैं ।
(A) भारोपीय परिवार—-
(क) यूरोपियन भाषाएं
(ख) भारत – ईरानी —
(i) ईरानी वर्ग
(ii) दरद ( कश्मीरी )
(iii)भारतीय आर्य भाषाएं ( हिंदी, गुजराती,नेपाली आदि )
(B) द्रविड़ भाषा परिवार —–
(i) उत्तरी शाखा — कुड़ख, गोंडी आदि
(ii) मध्य शाखा — तेलुगु
(iii) दक्षिणी शाखा — तमिल,कन्नड़, मलयालम, तुकू, कोडागु आदि ।
(C) आसि्ट्रक परिवार — खासी, मुंडा भाषाएं (संताली, खड़िया, हो, मुंडारी आदि )
(D) चीनी – तिब्बती परिवार — मिज़ो, नागा भाषाएं, मणिपुरी, नेवारी आदि ।
एक परिवार की भाषाएं किसी एक मूल भाषा से विकसित होती है और मूल तत्व सुरक्षित रहते हैं, जिन्हें हम तुलना से पहचान पाते हैं । निम्नलिखित मूल तत्व प्राय: समान होते हैं :
(i) आधारभूत शब्दावली ( हाथ, संख्या 2 आदि, जल, चंद्र, आदि )
(ii) ध्वनियाँ ( अ, आ, क, ख आदि ), ध्वनि की संबद्धता
(iii) लिपि
(iv) रूप ( बहुवचन प्रत्यय, भूतकाल का प्रत्यय आदि )
(v) परसर्ग ( कों, में आदि ) तथा प्रकार्यात्मक शब्द (और आदि )
(2) आकृतिमूलक वर्गीकरण :
एक परिवार की भाषाओं में रचना के समान तत्व मिलते हैं । भिन्न तत्व ही भिन्न परिवार सूचित करते है । हम भाषाओं को संरचना के आधार पर वर्गीकृत करते हैं, जिसे आकृतिमूलक वर्गीकरण कहा जाता है। आकृतिमूलक वर्गीकरण का आधार भाषा परिवारों की संकल्पना है ।
भाषाएं–
(१) अयोगात्मक (चीनी भाषा)
(२) योगात्मक
(ख) ध्वनि परिवर्तन और नियम :
भारोपीय परिवार की भाषाओं में ध्वनियों की संबद्धता पर भाषावैज्ञानिकों की रुचि बढ़ी । संस्कृत के व्यंजन और अंग्रेजी के व्यंजनों में नियमित रूप से बदलते हैं ।जैसे :
संस्कृत | अंग्रेजी |
महाप्राण से अल्प्राण भ – भ्राता | B – brother |
घोष से अघोष द – दंत | T- teeth |
स्पर्श से संघर्ष त – माता | M – mother |
प – पिता | F – father |
ग्रिम नामक जर्मन भाषावैज्ञानिक ने घोषित किया कि किस तरह एक भाषा की ध्वनियाँ दूसरी भाषाओं में बदल जाती है । उनके विचारों को ग्रिम नियम (Grimm’s Law ) की संज्ञा दी जाती है ।
अघोष (अल्पप्राण) | |
घोष (अल्पप्राण) | घोष (महाप्राण) |
विद्वानों ने तय किया की भाषण नियमों में बंधकर नहीं चलती । विद्वानों ने ध्वनि संबंधी कुछ घोषणा की कि ध्वनि संबंधी नियम अपवाद रहित है । व्यंग में उन्होंने नव्य व्याकरण की संज्ञा दी। इसी खींचातानी में तुलनात्मक भाषाविज्ञान इतिश्री हो गई । विद्वानों में प्रस्तुत सामग्री के आधार पर भाषाओं के ऐतिहासिक विकास, ध्वनि, अर्थ आदि में परिवर्तन तथा परिवर्तन के कारण आदि में रुचि लेने लगे । इससे ऐतिहासिक भाषा विज्ञान का श्रीगणेश हुआ ।