उषा कविता [Usha Kavita – कवि शमशेर बहादुर सिंह] For 2023 Exam

 उषा – कवि शमशेर बहादुर सिंह

(Usha Kavita – Kavi Shamsher Bahadur Singh)

Hindi Notes AHSEC Class 12

AHSEC – Assam Board

In this Article you will get उषा कविता [Usha Kavita] notes for AHSEC Class 12 Hindi. These उषा कविता [Usha Kavita  questions and answers] notes are useful for AHSEC Class 12 Exams 2023. Also will get chapterwise hindi notes here.

usha kavita

1. सप्रसंग व्याख्या कीजिये [Para 1]

प्रातः: नभ था बहुत नीला

शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)

प्रसंग: – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘उषा’ कविता से अवतारित है। प्रस्तुत कविता के रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह है। इस कविता में, कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। इस अंश में कवि ने सूर्योदय का मनोहारी वर्णन किया है।

व्याख्या: – कवि बताता है कि सुबह का आकाश ऐसा लगता है मानो नीला शंख हो। दूसरे शब्दों में, इस समय आसमान शंख के समान गहरा नीला लगता है। वह पवित्र दिखाई देता है वातावरण में नमी प्रतीत होता है। सुबह-सुबह आकाश ऐसा लगता है मानो कोई गीला चौका है। नमी के कारण गीलापन लगता है।

विशेष:

(1) कवि ने प्रकृति का मनोहारी चित्रण किया है।

(2) ‘शंख जैसे’ मैं उपमा अलंकार है।

(3) सहज व सरल शब्दों का प्रयोग किया है।

(4) ग्रामीण परिवेश सजीव हो उठता है।

(क) कवि तथा कविता का नाम बताइए।

उत्तर: – शमशेर बहादुर सिंह, उषा।

(ख) प्रातः कालीन आकाश की तुलना किससे की गई है तथा क्यों?

उत्तर: – प्रातः कालीन आकाश की तुलना नीले शंख से की गई है। वह शंख के समान पवित्र माना गया है।

(ग) कवि ने भोर के नभ को राख से लीपा हुआ चौका क्यों कहा है?

उत्तर: – कवि ने भोर के नभ को राख से लिपे हुए चौके के समान बताया है क्योंकि भोर का नाभ सफेद व नीले रंग से मिश्रित दिखाई देता है।

(घ) (अभी गीला पड़ा है) से क्या तात्पर्य है?

उत्तर: – इसका अर्थ है कि प्रातःकाल में ओस की नमी होती है। गीले चौके में भी नमी होती है। अतः नीले नभ को गीला बताया गया।

2. सप्रसंग व्याख्या कीजिये [Para 2]

बहुत काली सिल जरा-से लाल केशर से

कि धुल गयी हो

स्लेट पर या लाल खड़िया चाक

मल दी हो किसी ने

प्रसंग: – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘उषा’ कविता से अवतारित है। प्रस्तुत कविता के रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह है। इस कविता में, कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। इस अंश में कवि ने प्रकृति का मनोहारी वर्णन किया है।

व्याख्या: – कवि प्रातः काल का वर्णन करता है कि सूर्य क्षितिज के ऊपर उठता है तो हल्की लालिमा की रोशनी फैल जाती है। ऐसा लगता है कि काली रंग की सिल को लाल केसर से धो दिया गया है। अंधेरा काली सिल तथा सूरज की लाली केसर के समान लगती है। इस समय ऐसा लगता है कि काली स्लेट पर किसी ने लाल खड़ीता चॉक मल दिया हो। अंधेरा काली स्लेट के समान व सुबह की लालिमा लाल खड़िया चॉक के समान लगता है।

विशेष: –

(1) कवि ने प्रकृति का मनोहारी वर्णन किया है।

(2) पूरे काव्यांश में उत्प्रेक्षा अलंकार है।

(3) मुक्त छंद का प्रयोग है।

(4) नए बिंबो व उपमानो का प्रयोग है।

(क) कवि ने किस समय का चित्रण किया है?

उत्तर: – कवि ने सूर्योदय से पहले की भोर का चित्रण किया है।

(ख) कवि काली सिल और लाल केसर के माध्यम से क्या कहना चाहता है?

उत्तर: – कवि ने काली सिल को अंधेरा माना है। सुबह की किरणें लालिमा युक्त होती है आसमान में सूर्योदय से ऐसा लगता है। मानो किसी ने काली सिल को लाल केसर से धो दिया है।

(ग) कवि ने प्रातः कालीन सौंदर्य का चित्रण किस प्रकार किया है?

उत्तर: – कवि ने प्रातः कालीन सौंदर्य को काली स्लेट, लाल केसर, स्लेट व लाल खड़िया चॉक के उपमान के माध्यम से चित्रित किया है। प्रातः कालीन ओस व नमी के धुलने को दृश्य के माध्यम से बताया गया है।

AHSEC Class 12 Chapterwise Hindi नॉट्स के लिए निचे दिए हुए लिंक पर क्लिक करे:

1. दिन जल्दी – जल्दी ढलता है  हरिवंश राय बच्चन

2. कविता के बहाने – कुंवर नारायण

3. कैमरे में बंद अपाहिज – रघुवीर सहाय

4. सहर्ष स्वीकारा – गजानन माधव मुक्तिबोध

5. उषा – कवि शमशेर बहादुर सिंह

6. कवितावली – तुलसीदास

7. रुबाइयाँ – फ़िराक़ गोरखपुरी

8. छोटा मेरा खेत – उमाशंकर जोशी

9. बाजार दर्शन – जैनेंद्र कुमार

10. काले मेघा पानी दे – धर्मवीर भारती

11. चार्ली चैपलिन यानी हम सब – विष्णु खरे

12. नमक – रजिया सज्जाद जाहिर

13. शिरीष के फूल – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी

3. सप्रसंग व्याख्या कीजिये [Para 3]

नील जल में या किसी की

गौर झिलमिल देह

जैसे हिल रही हो ।

और…

जादू टूटता है इस उषा का अब

सूर्योदय हो रहा है।

प्रसंग: – प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘आरोह भाग 2’ में संकलित ‘उषा’ कविता से अवतारित है। प्रस्तुत कविता के रचयिता प्रसिद्ध प्रयोगवादी कवि शमशेर बहादुर सिंह है। इस कविता में, कवि ने सूर्योदय से पहले के वातावरण का सुंदर चित्र उकेरा है। इस अंश में कवि ने उषा सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत किया है।

व्याख्या: – कवि ने भोर के पल-पल बदलते दृश्य का सुंदर वर्णन किया है। वह कहता है कि सूर्योदय के समय आकाश में गहरा नीला रंग छा जाता है। सूर्य की सफेद आभा दिखाई देने लगती है। ऐसा लगता है मानो किसी गोरी सुंदरी नीले जल में हिल रही हो। धीमी हवा व नमी के कारण सूर्य का प्रतिबिंब हिलता – सा प्रतीत होता है। कुछ समय बाद जब सूर्योदय हो जाता है तो उषा का पल-पल बदलता सौंदर्य एकदम समाप्त हो जाता है।

विशेष:

(1) कवि ने उषा सुंदर दृश्य बिंब प्रस्तुत किया है।

(2) माधुर्य गुण है।

(3) ‘नील जल ……… दे रही हो।’ मैं उत्प्रेक्षा अलंकार है।

(4) सरल भाषा का प्रयोग है।

(5) मुक्त छंद है।

(क) भोर का दृश्य कैसा लगता है?

उत्तर: – भोर का नाम ऐसा लगता है जैसे नीले जल में किसी गोरी सुंदर युक्ति का शरीर झिलमिला रहा हो।

(ख) गोरी देह के झिलमिल की समानता किससे की गई है?

उत्तर: – गोरी देह के झिलमिलाने के समानता सुबह के सूर्य से की गई है। सुबह वातावरण में नमी तथा स्वच्छता होने के कारण सूर्य चमकता प्रतीत होता है।

(ग) उषा का जादू कैसा है?

उत्तर: – उषा का जादू अद्भुत है। सुबह का सूर्य ऐसा लगता है मानो नीले जल में गोरी युक्ति का प्रतिबिंब झिलमिला रहा हो। यह जादू जैसा लगता है।

(घ) उषा का जादू टूटने का तात्पर्य बताइए?

उत्तर: – उषा के समय प्राकृतिक सौंदर्य अति शीघ्रता से बदलता रहता है। सूर्य के आकाश में चढ़ते ही उषा का सौंदर्य समाप्त हो जाता है।

(ङ) उषा का जादू कब टूटता है?

उत्तर: – सूर्य के उदय होते ही उषा का जादू टूट जाता है। सूर्य की किरणों से आकाश में छाई लालिमा समाप्त हो जाती है।

Usha Kavita Questions and Answers

काव्य सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न

(क) काव्यांश में प्रयुक्त उपमानो का उल्लेख कीजिए।

प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे

भोर का नभ

राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है)

उत्तर:

(1) नीला शंख (सुबह के आकाश के लिए) ।

(2) राख में लीपा हुआ चौका (भोर के नभ के लिए) ।

(3) काली सिल (अंधेरे से युक्त आसमान) ।

(4) स्लेट पर लाल खड़िया चॉक (भोर से नमी युक्त वातावरण में उगते सूरज की लाली के लिए।

(5) नीले जल में झिलमिलाते गोरी देह (नीले आकाश में आता सूरज) ।

(ख) पद्यांश की भाषागत दो विशेषताओं की चर्चा कीजिए।

उत्तर: –

(1) कवि ने नए उपमानों का प्रयोग किया है।

(2) ग्रामीण परिवेश का सहज शब्दों में चित्रण।

(ग) भाव सौंदर्य: – नील जल ………… दिल रही हो।

उत्तर: – कवि कहना चाहता है कि सुबह सूर्योदय से पहले नीले आकाश में नमी होती है। स्वच्छ वातावरण के कारण सूर्य अत्यंत सुंदर दिखाई देती है। ऐसा लगता है जैसे नीले जल में गोरी की सुंदर देह झिलमिलाती है।

Usha Kavita Questions and Answers

(1) सूर्योदय से पहले आकाश में क्या – क्या परिवर्तन होते हैं उषा कविता के आधार पर बताइए। Or 

‘उषा’ कविता के आधार पर तथा सूर्योदय से ठीक पहले के प्राकृतिक दृश्य का चित्रण कीजिए।

उत्तर: – सूर्योदय से पहले आकाश का रंग शंख जैसा था, उसके बाद आकाश राख से लीपे चौक जैसा हो गया। सुबह की नमी के कारण वह गीला प्रतीत होता है। सूर्य की प्रारंभिक कारणों से आकाश ऐसा लगा मानो काली सील पर थोड़ा केसर डालकर उसे धो दिया गया हो काली स्लेट पर लाल खड़िया मल दी गई हो। सूर्य उदय के साथ ऐसा लगा जैसे नीले स्वच्छ जल में किसी गोरी युक्ति का प्रतिबिंब झिलमिला रहा हो।

(2) उषा कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीजिए जो सूर्योदय के साथ टूट जाता है।

उत्तर: – सूर्योदय से पूर्व उषा दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है भोर के समय सूर्य के किरणें जादू के समान लगती है इस समय आकाश का सौंदर्य छन-छन में परिवर्तन होता रहता है। यह उषा का जादू है। नीले आकाश का शंख सा पवित्र होना, काली सिल पर केसर डालकर धोना काली स्लेट पर लाल खड़िया मल देना, नीले जल में गोरी नायिका का झिलमिलता प्रतिबिंब आदि दृश्य उषा के जादू के समान लगते हैं। सूर्योदय होने के साथ ही दृश्य समाप्त हो जाते हैं।

(3) स्लेट पर या लाल खड़िया चॉक मल दी हो किसी ने। स्पष्ट करो।

उत्तर: – कवि कहता है कि सुबह के समय अंधेरा होने के कारण आकाश स्लेट के सामान लगता है। उस समय सूर्य की लालिमा युक्त किरणों से ऐसा लगता है जैसे काली स्लेट पर लाल खड़िया चॉक मल दिया हो। कवि आकाश में उभरे लाल-लाल धब्बों के बारे में बताना चाहता है।

(4) भोर के नभ को राख से लीपा गिला चौका की संज्ञा दी गई है क्यों?

उत्तर: – कवि कहता है। कि भोर के समय उसके कारण अकाश नमी युक्त व धुंधला होता है। राख से लीपा हुआ चौका भी मटमैला रंग का होता है। दोनों का रंग लगभग एक जैसा होने के कारण कवि ने भोर के नभ को राख लीपा गीला चौका की संज्ञा दी है। दूसरे, चौका को लीपे जाने से वह स्वच्छ हो जाता है। इसी तरह भोर का नभ भी पवित्र होता है।

(5) ‘उषा’ कविता में प्रातः कालीन आकाश की पवित्रता निर्मलता व उज्वलता से संबंधित पंक्तियों को बताइए।

उत्तर: – पवित्रता – राख मे दीपा हुआ चौक।.

निर्मलता – काली सिल जरा से केसर से की जैसे धूल गई हो।

उज्जवलता – नीले जल में किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही है।

(6) झील और स्लेट का उदाहरण देकर कवि ने आकाश के रंग के बारे में क्या कहा है?

उत्तर: – कवि ने सिल और स्लेट के रंग की समानता आकाश के रंग से की है। भोर के समय का आकाश का रंग गहरा नीला – काला होता है। और उसमें थोड़ी – थोड़ी सूर्योदय की लालिमा मिली हुई है।

(7) कोष्टक के प्रयोग से कविता में क्या विशेषता आ गई है समझाएं?

उत्तर: – नई जीवन के कवियों ने नए-नए प्रयोगों से स्वयं को अलग दिखाना चाहा है। शमशेर बहादुर ने कोष्टक का प्रयोग किया है। कोष्टक में दी गई सामग्री मुख्य सामग्री से संबंधित होती है, तथा पूरक का काम करती है। वह कथन को स्पष्टता प्रदान कराता है यहां (अभी गिला पड़ा है) वाक्य कोष्टक में दिया गया है जो प्रातः कालीन सुबह की नमी व ताज़गी को व्यक्त करता है। कोष्टक से पहले के वाक्य से काम की पूर्णता का पता तो चलता है, परंतु स्थिति स्पष्ट नहीं होती। गीला पड़ने से कथन का महत्व बढ़ जाता है।

(8) काव्यांश में आए किन्ही दो अलंकारों का नामोंल्लेख करते हुए उनसे उत्पन्न सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: – काव्यांश में शंख जैसे में उपमा तथा बहुत काली सिल गई हो। मैं उत्प्रेक्षा अलंकार है। इनसे अकाश की पवित्रता व प्रातः के समय का मटियालापन प्रकट होता है।

(9) कविता में किन उपमानो के आधार पर यह कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गांव की सुबह का चित्रवत वर्णन है।

उत्तर: – कवि के नीले शंख राख से लीपा हुआ गीला चौका, सील, स्लेट, नीला जल, गोरी युक्ति आदि उपमानो के आधार पर कहा जा सकता है कि ‘उषा’ कविता गांव की गतिशीलता चित्र है।

(10) कविता में प्रयुक्त किसी एक अलंकार का सौंदर्य का स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: – नील – जल – हिल रही हो। मैं उत्प्रेक्षा अलंकार है। इसमें कवि ने सूरज को गोर वर्ण नायिका बताया है जो नीले आकाश रूपी जल में हिलती हुई प्रतीत होती है।

(11) उषा का जादू क्या था? वह कैसे टूट रहा था?

उत्तर:- कवि ने गांव की सुंदर सुबह का चित्रण करने के लिए गतिशील बींब योजना की है। भोर के समय आकाश नीले शंख की तरह पवित्रा लगता है। उसे राख से लीपे चौके के समान बताया गया है जो सुबह की नमी के कारण नीला लगता है फिर वह काली सिल सा लगता है जिसे लाल केसर डालकर धो दिया गया हो। सूर्य की हल्की लालिमा से ऐसा लगता है कवि दूसरी उपमा स्लेट पर लाल खड़िया मिलने से देता है।

ये सारे उपमान ग्रामीण परिवेश से संबंधित है। आकाश के नीले पन में जब सूर्य प्रकट होता है तो ऐसा लगता है जैसे नीले जल में किसी युक्ति का गोर शरीर झिलमिल रहा हो सूर्य के उदय होते ही उषा का जादू समाप्त हो जाता है। ये सभी दृश्य एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इनमें गतिशील है।

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