क्रियाप्रधान वाक्य | IGNOU MHD – 07 Free Solved Assignment

क्रियाप्रधान वाक्य

IGNOU MHD – 07 Free Solved Assignment

क्रियाप्रधान वाक्यों में क्रिया ही वाक्य का मुख्य नियंत्रक तत्व होता है, अर्थात क्रिया की आकांक्षा के अनुसार ही वाक्य के अनिवार्य घटकों की संख्या तथा स्वरूप का निर्धारण होता है ।

उदाहरण के लिए — अकर्मक वाक्य में केवल कर्ता की सत्ता होती है, कर्म की नहीं होती है।

सकर्मक वाक्यों में कर्ता और कर्म की आकांक्षा होती है ।

इसी प्रकार द्विकर्मक क्रियाएं दो कर्मों की अपेक्षा करती है ।

क्रियाप्रधान वाक्य में अकर्मक, सकर्मक तथा द्विकर्मक  वाक्यों की चर्चा की जाती रही है, लेकिन क्रियाओं की आकांक्षा के अनुसार कम से कम दो ऐसे घटक मिलेंगे जो कर्म न होते हुए भी वाक्य के अनिवार्य घटक के रूप में प्रयुक्त होते हैं । ये हैं — सहअव्यय और सहपात्र ।

सहअव्यय सामान्यतः क्रियाविशेषण होते हैं । सहपात्र सामान्यत:  संप्रदान, अपादान, स्रोत, करण आदि हो सकते हैं, लेकिन सहअव्यय और सहपात्र दोनों के साथ केवल एक ही शर्त यह है कि वाक्य में इनका प्रयोग अनिवार्य घटक के रुप में होना चाहिए, न कि    ऐच्छिक घटक के रूप में ।

सह‌अव्यय : कुछ सकर्मक क्रियाएं ऐसी भी होती है जो अपने साथ अनिवार्य घटक के रूप में सहअव्यय की आकांक्षा करती हैं, उसे हम सभी सहअव्यय कहते हैं । जैसे– ड्राइवर ने गाड़ी गैरेज में रखी ।

सहपात्र : कुछ क्रियाएं अपने अर्थ की पूर्ति के लिए अनिवार्य घटक के रूप में कर्ता और कर्म के अलावा एक अन्य पात्र की आकांक्षा करती हैं,  जिसे हम  सहपात्र कहते है । जैसे– रमेश अपनी पत्नी से लड़ता है ।

इस प्रकार क्रियाओं की आकांक्षाओं के अनुसार क्रियाप्रधान वाक्यों के निम्नलिखित वाक्य वर्ग बनते हैं:

(i) सामान्य अकर्मक :

जो अपने अर्थ की पूर्ति के लिए कर्म या किसी अन्य अनिवार्य घटक की आकांक्षा नहीं करते, उसे सामान्य अकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे — पानी बह रहा है ।

(ii) सहअव्ययात्मक अकर्मक :

जो अपने अर्थ की पूर्ति के लिए अनिवार्य घटक के रूप में कर्म की नहीं बल्कि किसी सहअव्यय ( क्रिया विशेषण ) की आकांक्षा करते हैं, उसे सहअव्ययात्मक अकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे — गंगा हिमालय से निकलती है ।

(iii) सामान्य सकर्मक :

जो अपने अर्थ की पूर्ति के लिए, अनिवार्य घटक के रूप में कर्म की आकांक्षा करते हैं । यह कर्म संज्ञा के रूप में भी हो सकता है, भावार्थक संज्ञा के रूप में भी और उपवाक्य के रूप में भी हो सकता है । उसे सामान्य सकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे — अध्यापक ने दो छात्रों को बुलाया ।

(iv) सहअव्ययात्मक  सकर्मक :

जो अपने अर्थ की पूर्ति के लिए अनिवार्य घटक के रूप में कर्म के साथ-साथ एक सहअव्यय ( क्रिया विशेषण ) की भी आकांक्षा करते हैं, उसे सहअव्ययात्मक  सकर्मक क्रिया कहते हैं । जैसे — उन्होंने सारी जिम्मेदारियाँ मुझ पर थोप दीं ।

(v) सहपात्रीय सकर्मक :

जो अपने अर्थ की पूर्ति के लिए अनिवार्य घटक के रूप में कर्म के साथ-साथ एक अन्य सहपात्र की आकांक्षा करते हैं । द्विकर्मक, संप्रदान तथा कुछ  प्रकार के अपादान कारक भी इसी वर्ग में शामिल है ।उसे सहपात्रीय सकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे — मैंने अपने मित्र को एक किताब दी ।

(vi) कर्मपूरक :

जो अपने अर्थ की पूर्ति के लिए अनिवार्य घटक के रूप में कर्म के साथ-साथ एक कर्मपूरक की आकांक्षा करते हैं । यह कर्मपूरक संज्ञा और विशेषण भी हो सकते हैं ।उसे कर्मपूरक क्रिया कहते हैं । जैसे —  हम आपको ईमानदार समझते थे ।

Leave a Comment

error: Content is protected !!